अहिल्याबाई होलकर कुशल शासिका – अलोक कुमार
संघ ने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर का मनाया त्रिशताब्दी समारोह
501 बालिकाएं लोकमाता अहिल्याबाई हूबहू वेषभूषा की दी प्रस्तुति
लखनऊ, भारत प्रकाश न्यूज़। राजधानी में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह का आयोजन किया गया। रविवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा गोमती नगर विस्तार के शहीद पथ स्थित समिति अवध प्रान्त की ओर से लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह’ का भव्य आयोजन किया गया। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह आलोक कुमार उपस्थित रहे। उन्होंने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन पर संदेश देते हुए बताया कि एक कुशल शासिका के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्होंने कई ऐसी राजसी परम्पराओं को आरम्भ किया जो आज के समय में भी प्रांसगिक हैं। उन्होंने धर्मरक्षा का कार्य करने के साथ ही जन-जन के हित के लिये अनेक सफल प्रयास किये।
सह सरकार्यवाह आलोक कुमार ने अपने उद्बोधन के प्रारम्भ में भारत माता को प्रणाम करने के साथ ही कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों से कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने पर यह संदेश मिलता है कि पूर्वाग्रहों को त्यागकर सादगी से जीते हुए उन्होंने वह कर दिखाया जो आज के समय में भी प्रासंगिक है। उन्होंने बताया कि आज से तीन सौ बरस पहले पेंशन जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी। युद्ध होते थे। बड़ी संख्या में जनहानि होती थी। ऐसे में कई सैनिक बलिदान हो जाते थे। उनकी विधवाओं को सहारा देने के लिए ही लोकमाता ने अपने मालवा साम्राज्य में साड़ी का उद्योग लगाया। यह उनकी दूरदर्शिता ही थी कि देशभर से साड़ी पर कारीगरी करने वाले विभिन्न कारीगरों को एक स्थान पर लाकर बसाने के साथ ही उन्होंने सबको स्वावलम्बी बनाया। उन्होंने कहा कि लोकमाता अपना सम्पूर्ण समय अपनी जनता की भलाई के लिए ही देती थीं। वह एक साम्राज्ञी होने के बाद भी सादगी से जीते हुए एक छोटे स्थान पर रहती थीं। यही नहीं कृषकों के लिए उन्होंने कई प्रकार की योजनाओं का आरम्भ किया। धर्म का कार्य करने के साथ ही वह किसानों के सामने आने वाली रोजमर्रा की समस्याओं का निदान करती रहती थीं। एक न्यायप्रिय और दूरदर्शी महारानी होने के साथ ही उनमें समाज के हर वर्ग के लिए असीम प्रेम था। जिस समय पश्चिम सोच भी नहीं सकता था उस समय भारत में अहिल्याबाई, लक्ष्मीबाई और दुर्गावती जैसी महान वीरांगनाएं थीं।आज के समय में यह आवश्यक है कि उनके जीवन से मिलने वाली प्रेरणा को हम अपनी अगली पीढ़ी तक पहुँचाएं।
‘कुरीतियों से बाहर निकलकर सामाजिक समरसता के माध्यम से संगठित हों’
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में लोकमाता अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह केन्द्रीय समिति की सचिव डॉ. माला ठाकुर ने अपने वक्तव्य में कहा कि अहिल्याबाई होलकर का लोक कल्याणकारी शासन भूमिहीन किसानों, भीलों जैसे जनजाति समूहों तथा विधवाओं के हितों की रक्षा करने वाला एक आदर्श शासन था। समाजसुधार, कृषिसुधार, जल प्रबंधन, पर्यावरण रक्षा, जनकल्याण और शिक्षा के प्रति समर्पित होने के साथ-साथ उनका शासन न्यायप्रिय भी था। समाज के सभी वर्गों का सम्मान, सुरक्षा, प्रगति के अवसर देने वाली समरसता की दृष्टि उनके प्रशासन का आधार रही। उन्होंने बताया कि लोकमाता ने अपने जीवन से महिला सशक्तिकरण के कई उदाहरण दिये। वह साम्राज्ञी से बढ़कर एक राजयोगिनी थीं। हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक सभ्य समाज और देश का निर्माण करने का प्रयास करनी चाहिये। आज जब समाज को कुछ लोग जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बाँटने का काम कर रहे हैं। वहीं उस कालखंड में लोकमाता अहिल्याबाई न सिर्फ समाज की दशा और दिशा निर्धारण का काम कर रही थीं बल्कि वह सामाजिक समर्थन का उदाहरण भी प्रस्तुत कर रही थीं। लोक माता जब भोजन करती थीं तो वह समाज के सभी वर्ग के लोगों के साथ बैठकर एक साथ एक पंक्ति में भोजन करती थीं। उनके समय में किसी के साथ भी कभी जाति के आधार पर भेदभाव नहीं हुआ। इससे बड़ा सामाजिक समरसता का कोई उदहारण नहीं मिलता। आज यह भारत जागरण का समय है, जहां हमें कुरीतियों से बाहर निकलकर सामाजिक समरसता के माध्यम से संगठित होना है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूज्य लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के वंशज उदयराजे होलकर ने कहा कि उनके जीवन में समरसता का भाव था। अहिल्याबाई ने महेश्वर राज्य की सीमा को लाँघते हुए पूरे देश में काम किया। समिति के माध्यम से अहिल्याबाई के जीवन को जन-जन तक पहुँचाने का महान कार्य संघ कर रहा है। वहीं, बावन मंदिर अयोध्या धाम के पीठाधीश्वर पूज्य महंत बैदेही बल्लभ शरण महाराज ने कहा कि लोकमाता एक राजयोगिनी थीं। उन्होंने धार्मिक कार्य करने के साथ ही समाज का भी चिंतन किया।
इसके बाद एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से सबको अतिथियों को लोकमाता की जीवनगाथा,नाटक का मंचन किया गया। कार्यक्रम में 501 बालिकाएं लोकमाता अहिल्याबाई की वेषभूषा धवल वस्त्र धारण कर हाथ में शिवलिंग, माथे पर त्रिपुंड व सिर पर साफा बांधे आकर्षण का केन्द्र रहीं। इनमें से 10 बालिकाओं को पुरस्कृत किया गया। समिति के संयोजक राजकिशोर ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई का जीवन भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है। उन्होंने बद्रीनाथ से रामेश्वरम तक और द्वारिका से लेकर पुरी तक आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त मंदिरों का उन्होंने पुनर्निर्माण करवाया। प्राचीन काल से चलती आयी और आक्रमण काल में खंडित हुई तीर्थयात्राओं में उनके कामों से नवीन चेतना आयी। इन बृहद कार्यों के कारण उन्हें ‘पुण्यश्लोक’ की उपाधि मिली।कार्यक्रम में समरसता पाथेय और अहिल्याबाई होलकर पुस्तक का भी विमोचन किया। अहिल्याबाई होल्कर पुस्तक गरिमा मिश्रा ने लिखी है। वहीं, समरसता पाथेय का संपादन अहिल्याबाई होल्कर त्रिशताब्दी समारोह समिति के सदस्य बृजनंदन राजू ने किया है। कार्यक्रम स्थल पर प्रवेश द्वार से लेकर अंदर तक विशेष ढंग से फूल-पत्तियों व रंगोली के माध्यम से सजाया गया था। इस मौके पर यूपी के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, आरएसएस पूर्वी उप्र क्षेत्र प्रचारक अनिल, अवध प्रान्त के प्रान्त प्रचारक कौशल, वरिष्ठ प्रचारक वीरेन्द्र, क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोजकांत, माधवेन्द्र सिंह, राम जी भाई, संघ के प्रान्त प्रचार प्रमुख डॉ. अशोक दुबे, अहिल्याबाई होलकर त्रिशताब्दी समारोह के प्रान्त संयोजक राजकिशोर, सह संयोजक डाॅ. बिपिन द्विवेदी, विश्व संवाद केंद्र के प्रमुख डॉक्टर उमेश, भारत सिंह, विभाग प्रचारक अनिल, राष्ट्र सेविका समिति की प्रान्त कार्यवाहिका यशोधरा उपस्थित रही ।