चाचा भतीजे का लाखों में कारोबार, यथा स्थान पर नौकरी बरकरार
केजीएमयू में शिकायतकर्ता से खुला था फर्म कारोबार का काला चिट्ठा

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश को जीरो टॉलरेंस नीति के तहत कार्य को अंजाम दें रहें हैं। वहीं चिकित्सा संस्थान जीरो टॉलरेंस नीति को धता बताते हुए कृपा दृष्टि बरसा रहे हैं।
मामला किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के वित्त विभाग में तैनात चाचा भतीजे दिलीप कुमार माली के पद पर नियुक्ति,कार्य वित्त विभाग एवं फर्म संचालक आउट सोर्स कर्मी भतीजा मोहित का है। जिसमें बीते माह मार्च में सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिकायतकर्ता अंकित गुप्ता द्वारा कुलपति से लेकर डिप्टी सीएम, मुख्यमंत्री तक शिकायत कर संस्थान में फैले भ्रष्टाचार का उजागर किया था।
वहीं मेडिकल रिपोर्टर द्वारा जब इस मामले की पड़ताल की गई तो परत दर परत भ्रष्टाचार के पन्ने खुलने लगे। जब इस खबर को मार्च महीने में मेडिकल रिपोर्टर द्वारा खबर को प्रकाशित किया गया तब संस्थान प्रशासन हरकत में आकर जाँच कमेटी गठित कर दी थी।
जाँच कमेटी गठित तो हुई कार्रवाई फर्म को ब्लैक लिस्टेड पर सिमट कर रुक गयी और यही नहीं संस्थान प्रशासन एवं वित्त विभाग अधिकारी के संज्ञान में लाने पर भी कार्रवाई की पहिया तो चली लेकिन आगे जाकर के फिर ब्रेक लग गया। जिसमें चाचा स्थाई कर्मचारी दिलीप कुमार जिनकी भर्ती माली के पद पर हुई और कार्य वित्त विभाग संभाल रहें हैं।
वही भतीजा मोहित कुमार जो आउटसोर्स के पद पर कार्य करते हुए फर्म संचालक बन गया। इतना ही नहीं भतीजे की फर्म और चाचा की सह पर लगभग 20 लाख से अधिक का कारोबार भी कर डाला। जिसमें संस्थान प्रशासन को लाखों के कारोबार की भनक तक नहीं लगी। सांठगांठ पर कारोबार फल फूल रहा था लेकिन शिकायतकर्ता अंकित गुप्ता ने संस्थान में फैले सिंडिकेट का पर्दा उठा दिया।
बीते माह मार्च में जब मेडिकल रिपोर्टर द्वारा पूर्व वित्त अधिकारी विनय कुमार राय से जानकारी चाही तो उन्होंने यही बताया था कि फर्म को ब्लैकलिस्टेड किया जाएगा और संबंधित कर्मचारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। लेकिन ऐसा न होकर फर्म का कारोबार तो रोक दिया गया, लेकिन चाचा भतीजे फर्म संचालन करने का दोष सिद्ध होने पर भी यथा स्थान पर कार्य को अंजाम दें रहें हैं।
सूत्रों का कहना है कि चाचा भतीजे की संस्थान में उच्च अधिकारियो से गहरी सांठ गांठ होने के चलते कार्रवाई रुक जाती है। ऐसे में संस्थान प्रशासन की कार्यशैली पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का कार्य साबित हो रहा है। जब दोष सिद्ध हो जाए तो विभाग में बदलाव करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
लेकिन संस्थान प्रशासन की कार्यशैली से यही लगता है कि ऐसे लोगों को संरक्षण देते रहो और मलाई काटते रहो।इतना ही नहीं जब इस फर्म को जानने में वर्षो लग गए तब दूसरी भी फर्म बन सकती है। जिससे उच्च अधिकारियों का बाहरी खर्च ऐसे कारोबार निकलता रहे।