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इस दिन समुद्र मंथन से गौमाता और लक्ष्मी हुई अवतरित -आचार्य राजेश शुक्ला 

इन्द्र देव ने भी मनाया था दीपोत्सव

 

पंच पर्व का अलग -अलग प्रभाव करें पूजन, होगा लाभ 

 

चन्द्र प्रकाश सिंह

 

लखनऊ, भारत प्रकाश न्यूज़ । देश दुनिया में दीपोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। दीपोत्सव को शास्त्रों के अनुसार पंच पर्व कहा जाता है।

जिसमें करवा चौथ से आरम्भ होकर धनतेरस, छोटी बड़ी दिवाली, भैय्यादूज त्योहारों को कहते हैं। यह जानकारी सोमवार को आचार्य राजेश शुक्ला ने दी।

उन्होंने कहा कि दीपावली को पंच पर्व महोत्सव के नाम से पुकारा जाता है । दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस व नरक चतुर्दशी पर्व मनाए जाते हैं तो ‘दो दिन बाद ही गोवर्धन पूजा व भैया दूज पर्व मनाया जाता है ।

धनतेरस दीपावली के आगम‌न का सूचक हैं, इस दिन आयुर्वेद प्रवर्तक धन्वन्तरि भगवान का भी प्रादुर्भाव हुआ था और इसी दिन धन्वन्तरि जयन्ती भी मनायी जाती है। साथ ही इसी दिन लक्ष्‌मी प्रत्येक घर में वास करती हैं।

यम के नाम पर गाय के गोबर से एक दीपक का निर्माण करके सरसों के तेल से युक्त करके प्रज्ज्वलित करना चाहिए और धनतेरस को सतैल स्नान किया जाता हैं। इसके अलावा व्यापारी वर्ग सालभर का हिसाब किताब समाप्त कर बही खाता-रोकड़ आदिका पूजन करते हैं।

आचार्य ने बताया कि नरक चतुर्दशी रूपचौदस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकचतुर्दशी या रूप चौदस कहते हैं। इसी दिन छोटी दीपावली भी मनाई जाती हैं। आचार्य ने बताया कि इस दिन प्रातः शरीर पर तेल का मर्दन करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इसी दिन उन लोगों को जिनके माता-पिता जीवित हैं, यम व भीस्म को जलदान करना चाहिए। सायंकाल चार बत्तियों का आटे से बना दीपक प्रज्ज्वलित करने से नरकवास नहीं करना पड़ता।

कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था। इस चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। छोटी दीपावली भी इसी दिन मनाई जाती हैं। इसी दिन ही हनुमत् जन्मोत्सव भी मनाया जाता है।

राजेश शुक्ला ने कहा कि दीपावली गौ-व लक्ष्मी-गणेशपूजन कार्तिक अमावस्या को दीपावली पर्व धूमधाम से मनाया जाता हैं। समुद्र मंथन में आज के ही दिन प्रातः काल भगवती गौमाता और सायंकाल भगवती महालक्ष्‌मी प्रकट हुई थी और लक्ष्‌मी ने भगवान विष्णु का वरण किया था।

इसी दिन देवराज इन्द्र ने राजा बलि को पाताल का इन्द्र बनाकर अपने सिंहासन को बचाया था। इसी प्रसन्नता में इन्द्र ने दीपोत्सव मनाया था।

रावण का वध करके जब श्रीराम अयोध्या लौटे इसी दिन दिन भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक कर भव्य दीपोत्सव मनाया गया।

 

दिवाली पर जाने पूजन विधि..

दीपावली के दिन प्रातः काल से ही पूजन आरम्भ करना चाहिए। सर्व प्रथम भारतीय देशी गौमाता का पूजन, पितरों का पूजन, गणपति, विष्णु, लक्ष्‌मी, कुबेर आदि का पूजन सम्पन्न करें,

सायंकाल की बेला दीपक प्रज्ज्वलित कर रोली, चावल, खीर, बताशे, फूल, खिलौना से पूजन कर दीपकों को घर के मंदिर, गौशाला, तुलसी के पास, अन्न जहाँ रखा जाता, ग्रह की देहली पर रखें। रात्रि में गणेश मन्त्र, महालक्ष्मी के प्रसन्नार्थ श्रीसूक्त, कनक धारा स्तोत्र

ॐ महालक्ष्म्यै नमःके मन्त्र का 108 बार जप करना चाहिए और यज्ञ में आहुति प्रदान करना चाहिए विशेष रूप से दीपावली के दिन असहाय जरूरत मंद पुरुषों का सह‌योग अवश्य करना चाहिए।

इसी क्रम में दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन घर में गाय के गोबर द्वारा गोवर्धन पर्वत, श्रीकृष्ण, ग्वालों की आकृति बनाकर उनका नवीन अन्न जिसे अन्नकूट कहा जाता हैं।

पूजन कर परिक्रमा की जाती हैं। गोवर्धन पूजन का आरम्भ द्वापरयुग से हुआ। ब्रजवासियों का यह प्रमुख पर्व हैं। आचार्य शुक्ला ने बताया कि भैया दूज इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन सूर्यपुत्री यमी ने अपने भाई यम को तिलक किया था और वर मांगा था कि जो कोई भी इसदिन यमुना में स्नान करेगा और बहन के घर का भोजन करेगा उसे यमदूत पीड़ित नही करेंगें।

इसदिन बहन और भाई को साथ मे यमुना स्नान करना चाहिए दोनों दीर्घजीवी होते हैं। साथ ही आचार्य ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि दिवाली पर सभी भक्त गणेश लक्ष्मी की मूर्ति का पूजन करने के लिए हर वर्ष खरीददारी करते हैं और

पहले से रखी मूर्ति को यथा स्थान पर विसर्जित न करके कुछ अज्ञानता के कारण इधर उधर फेंकने का कार्य करते आ रहें हैं।उन्होंने कहा कि ऐसा कदापि न करें जिससे सभी भक्तों में ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी तभी ईश्वर की कृपा बरसेगी।

उन्होंने कहा इसमें वैज्ञानिक रहस्य भी शामिल है, दीपक जलने से नकारात्मक विचारों का नाश भी होता है। इसलिए हर्षोल्लास के साथ दिवाली पर्व मनाये और असहाय लोगों के घरों में भी प्रकाश व उजाला फैलाये। जिससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होंगी।

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