उत्तर प्रदेशधर्म-अध्यात्म

रामकृष्ण मठ में वैदिक मन्त्रोंच्चारण के माँ सरस्वती की पूजा 

अज्ञानता का नाश करने को आयी माँ सरस्वती -मुक्तिनाथानंद 

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। राजधानी के राम कृष्ण मठ में बसंत पंचमी पर वैदिक मन्त्रोंच्चारण के साथ माँ सरस्वती की पूजा अर्चना की गयी। रविवार को स्वामी त्रिगुणातीतानन्द की जयंती पर मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने उनकी जीवनी पर विस्तृत प्रकाश डाला। साथ ही बसन्त पंचमी पर प्रथम चरण में देवी सरस्वती की प्रतिमा के पूजा के साथ-साथ बेदी में माँ सारदा देवी की तस्वीर को भव्य सजावट के साथ रखा गया एवं दोनों प्रतिमाओं की एक साथ पूजा हुई।वहीं मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने कहा कि रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे कि माँ सारदा देवी स्वयं सरस्वती एवं ज्ञानदायनी है। जीवों को अज्ञान का अंधकार नाश करने के लिए उनका अविर्भाव हुआ था। इसी वचन को ध्यान में रखते हुये रामकृष्ण मठ में सरस्वती पूजा में माँ सारदा देवी की भी पूजा भी की गयी।उन्होंने कहा कि बंसत पंचमी बसंत ऋतु के आगमन की सूचना है। देवी सरस्वती व माँ सारदा के आशिर्वाद से हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश होते रहे एवं हमारा जीवन भी बंसत ऋतु जैसा प्राणवान एवं आनन्दपूर्ण हो जाये। इसी विश्वास के साथ सरस्वती पूजा मनाया जाता है। माँ सरस्वती देवी की इस पूजा व हवन में लखनऊ एवं दूर-दराज से आए भक्तगणों ने स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज एवं अन्य साधु, ब्रहृमचारीयों के संग पूजा में भाग लिया। इसके पश्चात् प्रातः 5 बजे शंखनाद व मंगल आरती के उपरान्त वैदिक मंगलाचरण एवं सरस्वती वंदना एवं जय जय भुवन मंगला का समूह में गायन प्रातः 6ः50 बजे से स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज के निर्देशन में हुआ। इसी क्रम प्रवचन देते हुये स्वामी ने बताया कि वीणापाणी सरस्वती इस युग में माँ सारदा के रूप में प्रकट है। माँ सारदा देवी के पावन जीवन तथा अनूठा वाणी का अनुसरण करें, तब हम अवश्य माता सरस्वती के आर्शीवाद से यर्थात ज्ञान प्राप्त करेगें एवं जीवन सफल हो जायेगा। स्वामी ने कहा कि भगवान श्रीरामकृष्ण ने कहा ‘वह सारदा है, सरस्वती है। साधारण मानवी के समान दिखने पर भी वस्तुतः वह स्वयं साक्षात् जगदम्बा है। जिसकी कृपा कटाक्ष से मनुष्य को ज्ञान लाभ होता है। वह मनुष्यों को ईश्वरीय ज्ञान देने के लिए, जगत् को आलोक का मार्ग दिखाने के लिए अवतीर्ण हुई है। स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि में ‘माँ की महिमा’-उन्होंने बेलूड़ मठ में कहा था की ‘माँ सरस्वती के रूप में बंगला की अवतार हैं। बाहर से वे शान्ति से परिपूर्ण हैं, परन्तु भीतर से वे आसुरी शक्ति की विनाशक हैं। माँ सरस्वमी के संबंध में स्वामी शिवानन्द ने कहा था कि हमारी माँ का नाम है सारदा। माँ स्वयं ही सरस्वती हैं, वे ही कृपा करके ज्ञान देती हैं। ज्ञान अर्थात् भगवान को जानना, ज्ञान होने पर ही ठीक-ठीक सच्ची भक्ति होनी सम्भव है। ज्ञान के बिना भक्ति नहीं होती। शुद्ध ज्ञान और शुद्ध भक्ति दोनों एक हैं। माँ की कृपा से ही वह होना सम्भव है। माँ ही ज्ञान की स्वामिनी हैं। वे यदि कृपा करके ब्रह्मविद्या का द्वार खोल दें, तभी जीव ब्रह्मविद्या का अधिकारी हो सकता है, अन्यथा नहीं। दुर्गा-सप्तशती में कहा गया है कि ‘‘सैषा प्रसन्ना वरदा नृणां भवति मुक्तये’’ अर्थात ये महामाया ही प्रसन्न होकर मनुष्यों को मुक्ति का वर प्रदान करती हैं। माँ ही साक्षात् सरस्वती हैं, उन्हीं की कृपा से हमारे मठ में उनकी नित्य पूजा होती है। वे ही कृपा करके सबका अज्ञान दूर करती हैं और ज्ञान-भक्ति प्रदान करती हैं। पूजा में भारी तादात में श्रद्वालुओं ने उपस्थित होकर प्रातः 11ः15 बजे माँ सरस्वती को पुष्पांजलि अर्पण किया। इस अवसर पर हातेखड़ि अनुष्ठान के माध्यम से रामकृष्ण मठ, लखनऊ के स्वामी इष्टकृपानन्द द्वारा कुछ बच्चों को अक्षर से परिचिति कराया गया। तदुपरांत देवी को अन्न भोग चढ़ाया गया और भोगारति एवं हवन हुआ। पूजा में आये लगभग 1000 भक्तगणों को मंदिर के पूर्वी प्रांगण में पके हुए प्रसाद का वितरण किया गया। सांयकाल ठाकुर की आरती के उपरान्त माँ सरस्वती देवी की आरती की गयी तथा देवीनाम सकीर्तन स्वामी पारगानन्दजी के नेतृत्व में. किया गया। स्वामी सारदानन्द द्वारा रचित ’सपार्षद- रामकृष्ण स्तोत्रम’ का पाठ के स्वामी पारगानन्द के नेतृत्व में किया गया। स्वामी ने बताया कि उनके संन्यास के पूर्व नाम सारदा प्रसन्न मित्र था। उनका जन्म 30 जनवरी 1865 को कलकत्ता के पास भांगर (अब दक्षिण 24 परगना में) के नौरा गाँव के एक कुलीन परिवार में हुआ था। जनवरी 1887 में शारदा ने अपने भाई सन्यासियों के साथ पूर्ण त्याग एवं संन्यास की शपथ ली, और स्वामी त्रिगुणातीतानन्द के रूप में जाना जाने लगे जिसका अर्थ (जिसने तीन गुणों या गुणों को पार कर लिया और सर्वोच्च आनंद प्राप्त कर लिया, एक प्रबुद्ध। त्रिगुणः तीन गुण। या सत्व (चिंतन), रजस (गतिविधि) और तमस (अंधेरा या निष्क्रियता) के गुण)। 1891 में स्वामी त्रिगुणातीतानन्द ने वृंदावन, मथुरा, जयपुर, अजमेर, काठियावाड़ के लिए तीर्थयात्रा शुरू की। पोरबंदर में उनकी मुलाकात स्वामी विवेकानन्द से हुई। इसके बाद वे बरानगर मठ लौट आए। 1895 में, वे कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के लिए पैदल निकल पड़े। वे कलकत्ता वापस आए और एक भक्त के घर में रहे और कुछ समय के लिए एक चिंतनशील जीवन व्यतीत किया। कुछ समय बाद वे रामकृष्ण सम्प्रदाय के नवगठित आलमबाजार मठ में रहने चले गए। वे स्वामी विवेकानन्द के सेवा और परोपकारी गतिविधियों के आदर्श से प्रभावित थे। 1897 में जब दिनाजपुर जिला भयानक अकाल की चपेट में था, तब उन्होंने वहां जाकर राहत कार्य का आयोजन किया। इस अवसर पर उनकी सेवा की अद्भुत भावना का प्रमाण था। उन्होंने भूखे लोगों को भोजन वितरित करने में दिन-रात मेहनत की।जहाँ तक भोजन के प्रश्न का संबंध है, उन्होंने केवल शुद्ध शाकाहारी आहार ग्रहण करने का निश्चय किया, और संयुक्त राज्य अमेरिका में उगाई जाने वाली सब्जियों और फलों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त न कर पाने के कारण, उन्होंने जीने के संकल्प के साथ अपनी यात्रा शुरू की, यदि आवश्यक हो, रोटी और पानी ही ग्रहण किया। बाद में उन्होंने निश्चित रूप से पाया कि उस देश में सभी प्रकार की सब्जियां और अनाज बहुतायत में उगाए जाते थे। स्वामी ने बताया कि योगीन महाराज के देहत्याग अर्थात् अपने एक अन्तरंग के देहान्त तथा उसके बाद भाई अभयकुमार की मृत्यु से माँ इतनी व्यथित हुईं कि उनके लिए कोलकाता में, विशेषकर इस मकाऀ रहना कठिन हो गया। यानि सारदा महाराज उन्हें जयरामबाटी ले गए। वे लोग वर्धमान होकर जा रहे थे। रास्ते की घटना बाद में जैसी माँ के मुँह से सुनने को मिली, वैसी ही यहाँ अपनी भाषा में लिपिबद्ध कर रहा हूँ कृदामोदर नदी पार करने के बाद, पालकी न मिलने के कारण माँ बैलगाड़ी में चलीं और सारदा महाराज कन्धे पर लाठी लिए गाड़ी के आगे-आगे पैदल चले। रात आधी से अधिक बीत चुकी थी, लगभग तीसरे पहर का समय था कृ माँ सो गईं थीं। चलते-चलते सारदा महाराज ने देखा कि बाढ़ के पानी से एक जगह सड़क कट गई है और एक ऐसा गड्ढा है, जिससे बचकर गाड़ी नहीं जा सकती। गड्ढे पर से ले जाने पर गाड़ी का चक्का टूटने और हचके से माँ की नींद खुलने या उन्हें चोट आने की सम्भावना है। उन्हें (सारदा महाराज को) एक ऐसा उपाय सूझा, जिससे गाड़ी सहज ही निकल जा और माँ की नींद भी न टूटे। वे औंधे-मुख उस गड्ढे में लेट गए। किसी को कुछ पता न चला। उद्देश्य था कि गाड़ी उनके शरीर के ऊपर से निकल जाए। उद्देश्य निश्चय ही महान् था, लेकिन उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि उनके ऐसा करने से उनकी मृत्यु तो निश्चित है ही, फिर इस निर्जन स्थान तथा गहन रात में उनके सिवा माँ को कौन देखेगा, माँ की रक्षा में कौन तैनात होगा? वे इसी दायित्व को लेकर तो कोलकाता से चले थे। गड्ढे के पास पहुँचते ही सहसा माँ की नींद खुल गई और चाँदनी में स्थिति देखकर वे तत्काल सब समझ गईं। उन्होंने चिल्लाकर गाड़ीवान से गाड़ी रोकने को कहा और नीचे उतरकर सारदा महाराज को उनके इस कार्य के लिए खूब डाँटने के बाद, पैदल वह गड्ढा पार किया। खाली गाड़ी सहज ही गड्ढे पर से निकल गई, वैसे सारदा महाराज को धक्के लगाने पड़े थे। बाद में उनकी निष्ठा तथा गुरुभक्ति की विशेष प्रशंसा करते हुए माँ ने हम लोगों को यह घटना सुनाई थी।10 जनवरी 1915 को उनका निधन हो गया। समय-समय पर उन्होंने एक के बाद एक शिष्यों को अंत तक लक्ष्य के प्रति वफादार रहने का निर्देश दिया और यहां तक कि आखिरी तक उनके विचार अपने लिए नहीं बल्कि गुरु के काम और मिशन के लिए थे। उन्होंने कहा था पूरे मन से परमेश्वर से प्रार्थना करते रहो; यदि आपके लिए एक गुरु की आवश्यकता उत्पन्न होती है, तो भगवान आपके लिए किसी ऐसे व्यक्ति को भेजेंगे जो वही होगा जो आप चाहते हैं। प्रवचन के उपरान्त देवीनाम संकीर्तन स्वामी पारगानन्द के नेतृत्व हुआ एवं देवी सरस्वती को भोग अपर्ण के पश्चात उपस्थित सभी भक्तों के मध्य हाथों में प्रसाद के पैकेट वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। इस अनुष्ठान में विवेकानन्द कॉलेज ऑफ नर्सिग एवं विवेकानन्द स्कूल ऑफ नर्सिग की छात्रायें तथा अनेक शिक्षा प्रतिष्ठान के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। माँ सरस्वती की पूजा कल सोमवार 3 फरवरी को प्रातः 5 बजे से प्रारम्भ होगी। वैदिक मन्त्रोंच्चारण का पाठ स्वामी इष्टकृपानन्द द्वारा होगा एवं प्रातः 7ः15 बजे से स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज द्वारा (ऑनलाइन) सत् प्रसंग में धार्मिक प्रवचन देंगे तथा प्रातः 8ः50 बजे पुष्पांजलि के पश्चात प्रातः 10 बजे देवी की दर्पण का विर्सजन व विदायी भजन एवं दधिकर्मा प्रसाद वितरण होगा। इसके पश्चात् सरस्वती देवी की मृन्मयी प्रतिमा का विसर्जन पूरे धार्मिक रीति रिवाज के साथ गोसाईगंज थाना अर्न्तगत ग्राम बक्कास में स्थित रामकृष्ण मठ के निजी तालाब मे किया जायेगा।

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