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पीजीआई के डॉक्टरों ने लिगमेंट सर्जरी कर मरीज को दी नई जिंदगी

ब्रेन डेड डोनर से लिगमेंट ले की आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी

 

 लखनऊ भारत प्रकाश न्यूज़। डॉक्टरों की टीम ने चिकित्सा ब्रेन डेड डोनर से लिगामेंट लेकर आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी कर मरीज को नई जिंदगी दी है। एसजीपीजीआई में मरीज आशीष कुमार को पैरो में गंभीर चोट लगने परिजनों ने एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया था।

उन्हें फीमर और टिबिया के फ्रैक्चर के साथ-साथ घुटने का डिस्लोकेशन भी शामिल था। एपेक्स ट्रामा सेंटर में ऑर्थोपेडिक टीम ने उसकी स्थिति को बहुत कुशलता से संभाला। जिसमें फीमर और टिबिया पर सर्जरी की गई थी। चोट के कारण, घुटने को स्थिर रकने वाले सभी प्रमुख लिगामेंट फट गए थे।

फीमर और टिबिया पर सर्जरी के बाद, एक जटिल आर्थ्रोस्कोपिक लिगामेंट सर्जरी करके सारे लिगमेंट को वापिस बनाया गया । मरीज के फटे हुए लिगामेंट को बनाने के लिए , लिगामेंट को मरीज के शरीर से निकाला जाता है, लेकिन घुटने के चार लिगमेंट डैमेज होने से चार लिगमेंट को शरीर से निकलने के बजाये ब्रेन डेड डोनर से लेकर प्रयोग किया गया। डॉक्टरों का कहना है कि यह उत्तर भारत मैं पहली बार हुआ है

यह प्रयोग एलोग्राफ्ट ( ग्राफ्ट्स फ्रॉम ए ब्रेन डेड पर्सन) का सफलतापूर्वक उपयोग मल्टीलिगामेंट इंजरी वाले मरीज में किया गया है । वहीं डॉ. पुलक शर्मा के मार्गदर्शन में यह आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी की गयी। एलोग्राफ्ट लिगमेंट,एक ऐसा लिगमेंट है जो दुसरे के शरीर से लिया जाता है। पारंपरिक ऑटोग्राफ्ट ( खुद के शरीर से लिए गए लिगमेंट) की तुलना में कई लाभ प्रदान करते हैं।

वे लिगमेंट को ,रोगी के अपने शरीर से निकालने की आवश्यकता को समाप्त करता हैं। इससे सर्जरी का समय और पश्चात का दर्द कम हो जाता है। मल्टीलिगामेंट , यानि दो या दो से ज्यादा लिगमेंट की इंजरी के मामलों में, एलोग्राफ्ट का उपयोग रिकवरी परिणामों को बेहतर बना सकता है और कार्यक्षमता को अधिक प्रभावी ढंग से बहाल कर सकता है।

यह सर्जरी न केवल एपेक्स ट्रॉमा सेंटर में उन्नत चिकित्सा पद्धतियों की क्षमताओं को उजागर करती है, बल्कि उत्तर भारत में इसी तरह के मामलों में लिगामेंट सर्जरी से जुड़े भविष्य के उपचारों के लिए एक मिसाल भी स्थापित करती है। एलोग्राफ्ट्स का सफल प्रयोग सर्जिकल तकनीकों को बढ़ाने में विशेष योगदान माना जा रहा है।

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