भारतीय सेना और आईआईटी कानपुर के मध्य समझौता
पहचान प्रणाली विकसित करने को किया एमओयू

लखनऊ, भारत प्रकाश न्यूज़। भारतीय सेना ने तकनीकि के क्षेत्र में कदम बढ़ा दिया है। शुक्रवार को दुर्गम ऊंचाई, हिमनदीय क्षेत्रों में सैनिकों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए भारतीय सेना मध्य कमान ने स्वचालित हिमस्खलन पीड़ित पहचान प्रणाली के अनुसंधान और विकास के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
राजधानी स्थित सूर्या कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता के मार्गदर्शन में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। जिसका उद्देश्य स्वदेशी तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाकर एक अत्याधुनिक प्रणाली विकसित करना है,जो हिमस्खलन के दौरान बर्फ में दबे कर्मियों का तुरंत पता लगाने और उनकी स्थिति निर्धारित करने में सक्षम हो। बता दें कि इस
प्रस्तावित प्रणाली में बर्फ में दबे व्यक्ति के सटीक स्थान को चिह्नित करने के लिए सैनिक द्वारा पहने गए एक कॉम्पैक्ट अटैचमेंट से प्रक्षेपित एक प्रकाशमान द्रव का उपयोग किया जाएगा। इससे बचाव कार्य में लगने वाला समय काफी कम हो जाएगा। इससे आपात स्थितियों में जीवित रहने की संभावना बढ़ जाएगी।
वहीं लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता ने कहा कि “आईआईटी कानपुर के साथ यह सहयोग दुर्गम ऊंचाई वाले और हिमाच्छादित क्षेत्रों में हिमस्खलन पीड़ितों का पता लगाने और उन्हें बचाने के लिए एक उन्नत तंत्र प्रदान करने के लिए स्वदेशी तकनीक के विकास और उपयोग में एक मील का पत्थर है।
सूर्या कमान के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल नवीन सचदेवा ने कहा कि यह पहल रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता और दुर्गम इलाकों में क्षेत्रीय इकाइयों की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने के प्रति भारतीय सेना की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर और परियोजना प्रभारी डॉ. सुब्रमण्य ने इस साझेदारी के प्रति आशा व्यक्त करते हुए कहा कि “यह सहयोग घरेलू अनुसंधान एवं विकास एजेंसियों को भारतीय सेना की क्षमताओं को बढ़ाने में सीधे योगदान करने का अवसर प्रदान करता है। आईआईटी कानपुर भविष्य में ऐसी और भी अग्रणी परियोजनाओं को शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
इस परियोजना की प्रगति और निगरानी लेफ्टिनेंट कर्नल पीयूष धारीवाल के नेतृत्व में मुख्यालय मध्य कमान के अंतर्गत एक आयुध रखरखाव कंपनी द्वारा की जाएगी। यह पहल भारत के सैनिकों की सुरक्षा के लिए नवाचार और स्वदेशी रक्षा समाधानों को बढ़ावा देते हुए आत्मनिर्भर भारत के राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुरूप है।
इस परियोजना का महत्व वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर माना दर्रे के पास हाल ही में हुए दुखद हिमस्खलन के मद्देनजर उजागर हुआ है। जहाँ सीमा सड़क संगठन के 50 से अधिक जवान बर्फ में फँस गए थे और कई बहुमूल्य जानें चली गईं। एएवीडीएस से पीड़ितों का सटीक और समय पर पता लगाकर बचाव कार्यों में व्यापक बदलाव आने की उम्मीद है।
सैन्य अनुप्रयोगों के अलावा, इस तकनीक का हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में पर्वतारोहियों और साहसिक पर्यटकों के लिए नागरिक उपयोग भी संभव होगा, जिससे समग्र सुरक्षा मानकों में सुधार होगा।
यह सहयोग भारतीय सेना के अत्याधुनिक अनुसंधान को परिचालन वास्तविकताओं के साथ मिशन की तैयारी सुनिश्चित हो सकेगी।



