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5 हज़ार में से एक व्यक्ति हीमोफीलिया से ग्रसित- डॉ. वर्मा

कल विश्व हीमोफीलिया दिवस

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। हीमोफीलिया बीमारी से महिला पुरुष दोनों में पायी जाती है। पुरुषो में अधिक फिर भी महिलाएं अछूती नहीं हैं। हीमोफीलिया रक्त विकार सम्बन्धी जन्मजात आनुवंशिक बीमारी है। बुधवार को विश्व हीमोफीलिया दिवस के पूर्व केजीएमयू के बाल रोग विशेषज्ञ प्रो.निशांत वर्मा ने बताया कि हर 5 हज़ार लोगों में से एक व्यक्ति हीमोफीलिया से ग्रसित होता है। अमूमन सामान्य व्यक्ति में चोट लगने के दो से तीन मिनट बाद ब्लीडिंग अपने आप रुक जाती है। फिर भी हीमोफीलिया में ऐसा नहीं होता है।

इसके पीछे प्लेटलेट्स और क्लॉटिंग फैक्टर्स जिम्मेदार होते हैं। क्लॉटिंग फैक्टर्स 8 और 9 की कमी को हीमोफीलिया कहा जाता है। जिसके कारण चोट लगने के बाद ब्लीडिंग लम्बे समय तक होती है। कभी कभी यह ब्लीडिंग बिना चोट लगे भी होती है। उन्होंने बताया कि यह बीमारी “X” क्रोमोसोम की गड़बड़ी के कारण होती है और पुरुषों में एक “X” क्रोमोसोम की कॉपी होती है। इसलिए यह बीमारी अधिकांशतया पुरुषों में ही देखने को मिलती है।

इसके लक्षण बचपन में ही दिखाई देते हैं। जन्मजात बीमारियाँ माता पिता से ही बच्चों में जाती हैं। माता पिता के जींस में कुछ गड़बड़ी होगी तभी वह बीमारी बच्चों में जाएगी। हीमोफीलिया ऐसी अनुवांशिक बीमारी है जो जेंडर लिंक्ड है अर्थात जेंडर बीमारी को प्रभावित करता है। प्रो वर्मा ने कहा कि महिलाओं में लक्षण न के बराबर होते हैं,जबकि माँ के परिवार अर्थात मामा और नाना में इसके लक्षण स्पष्ट दिखाई देंगे।

डॉ. निशांत बताते हैं कि इसमें माता-पिता में पिता हीमोफीलिया से ग्रसित है और माँ वाहक है तो यदि बच्चा लड़का है तो उसमें हीमोफीलिया होने की 50 फीसद गुंजाईश होती है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान जब भी जाँच कराएँ तो चिकित्सक को जरूर बताएं कि उनके पिता या भाई को हीमोफीलिया है।

इसकी जाँच आज के समय में कॉमन नहीं है। वाहक का पता लगाना मुश्किल होता है। इसके लिए जेनेटिक जांचों की जरूरत होती है। इसलिए महिला से उसके परिवार की हिस्ट्री जानकर बीमारी का पता लगाया जाता है।

जानें हीमोफीलिया का उपचार..

प्राथमिक उपचार में सबसे पहले जहाँ से रक्तस्राव हो रहा है उस हिस्से को जोर से दबाएँ। जोर से दबाने से रक्तस्राव कुछ कम होगा। यदि आधे घंटे तक दबा के रखते हैं तो माइनर हीमोफीलिया में रक्तस्राव बंद हो जाता है। गंभीर स्थिति में दबाने से रक्तस्राव नहीं रुकता है अस्पताल जाने की जरूरत पड़ती है।

बीमारी के उचित प्रबन्धन के लिए जरूरी है कि समय से बीमारी का पता लगाया जाये। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को एक साल की उम्र से रक्तस्राव हो रहा है लेकिन परिवारवाले अनदेखा कर रहे हैं और उसकी आयु आठ-दस साल हो गयी है। ऐसे में स्थिति खराब हो जाती है।

हीमोफीलिया में सबसे खराब चीज यह होती है कि जोड़ों में रक्तस्राव होता है और धीरे धीरे करके जोड़ खराब हो जाते हैं और कभी-कभी तो स्थायी तौर पर ख़राब हो जाते है। समय से पता चलने पर क्लॉटिंग फैक्टर मुहैया कराये जा सकते हैं।हीमोफीलिया ग्रसित भी जी सकते हैं सामान्य जीवन डॉ. निशांत बताते हैं कि यदि सावधानी बरतें और सही से फैक्टर लेते रहें तो हीमोफीलिया ग्रसित व्यक्ति भी स्वस्थ व्यक्ति की तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं।

हीमोफीलिया में सबसे बड़ी मुश्किल जोड़ों की होती है, जिससे व्यक्ति के गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य प्रभावित होता है। हीमोफीलिया ग्रसित लोगों को अपने को चोट से बचाना चाहिए। हीमोफीलिया रोगी अपने पास एक आईडी रखें जिसमें यह जानकारी हो कि आप हीमोफीलिया ग्रसित हैं। जिससे कि आकस्मिक दुर्घटना के समय विशेष ध्यान दिया जा सके। स्वस्थ जीवन शैली अपनाएँ। वजन नियंत्रित रखें संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का सेवन करें। चिकित्सीय राय का अक्षरशः पालन करें।

हीमोफीलिया का अन्य बीमारियों जैसे डायबिटीज, हाइपरटेंशन से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसकी दवाएं मरीज बेशक ले सकते हैं लेकिन ऐसी दवाएं जो रक्त को पतला करने की होती हैं उन दवाओं के सेवन से पहले चिकित्सक को हीमोफीलिया ग्रसित हैं इसकी जानकारी अवश्य दें।

जानें हीमोफीलिया जाँच केंद्र के बारे में..

डॉ. सूर्यांशु ओझा महाप्रबंधक, ब्लड, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, बताते हैं कि हिमोफीलिया रोगियों के इलाज को लेकर सरकार संवेदनशील और सजग है। प्रदेश में हीमोफीलिया के लगभग 7 हज़ार मरीज तथा राम मनोहर लोहिया चिकित्सा संस्थान, केजीएमयू, एसजीपीजीआई सहित कुल 26 हीमोफीलिया केयर सेंटर हैं। यहाँ पर 24 घंटे सेवाएं उपलब्ध रहती हैं। यहाँ पर हीमोफीलिया ग्रसित रोगियों को निःशुल्क क्लॉटिंग फैक्टर उपलब्ध कराये जाते हैं। इसके लिए लाभार्थी को हीमोफीलिया सेंटर में पंजीकरण कराना होता है। जिससे कि उनका कार्ड बन जाता है। इसको दिखाकर वह सेंटर से क्लॉटिंग फैक्टर ले सकते हैं जिससे कि शरीर में कमी नहीं होती। ज्ञात हो कि विश्व हीमोफीलिया दिवस

हर साल 17 अप्रैल को मनाया जाता है। लोगों को हीमोफीलिया के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से किसी न किसी थीम के साथ यह दिवस मनाया जाता है । इस दिवस की थीम है, ‘सभी के लिए पहुंच’ महिलाओं और लड़कियों को भी होता है। रक्तस्राव(एक्सेस फॉर ऑल : विमेन एंड गर्ल्स ब्लीड टू)। इस थीम का तात्पर्य है कि हीमोफीलिया संबंधित सेवाओं तक सभी की पहुंच हो । हीमोफीलिया के अलावा भी बहुत सी ऐसी बीमारियां हैं जिनमें रक्तस्राव होता है । इसलिए महिलाओं और लड़कियों में होने वाले रक्तस्राव को अनदेखा नहीं करना चाहिए और इसकी जांच करानी बहुत जरूरी है जिससे कि रक्तस्राव के सही कारण का पता लग सके और उसका उचित प्रबंधन हो सके ।

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