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केजीएमयू में चाचा भतीजे की फर्म पर लगी रोक, नहीं होगी खरीदारी

चाचा भतीजे की फर्म का रुका कारोबार,जगह बरकरार

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। संस्थान से हर महीने आमदनी के साथ फर्म बनाकर धन एकत्र करने वाले चाचा भतीजे की आखिरकार फर्म पर रोक लगा दी गयी है। जिस तरह से नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरी के साथ फर्म बनाकर संस्थान से लाखों का कारोबार कर डाला हो और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी तो मामला उच्च अधिकारियों से गहरी सांथगांठ का होना साबित होता है।

बता दें कि मामला केजीएमयू में तैनात माली के पद पर नियुक्त कार्य वित्त विभाग में कार्यरत दिलीप कुमार और भतीजा आउट सोर्सिंग पर भर्ती मोहित फर्म संचालक का है। जिसमें चाचा दिलीप कुमार को नियुक्ति माली के पद की गयी थी और संस्थान के वित्त विभाग की मेहरबानी के द्वारा लेखाजोखा का कार्य थमा दिया गया। साथ ही दिलीप कुमार नौकरी में देखा की बचत नहीं हो रही तो भतीजे को फर्म चलाने का रास्ता दिखा दिया था।

जिससे संस्थान ने उस फर्म से लाखों की खरीद फरोख्त की थी। वहीं जब बीते माह मार्च में भारत प्रकाश न्यूज़ और ग्राम्य वार्ता हिंदी दैनिक समाचार पत्र में खबर प्रकाशित हुई तब संस्थान प्रशासन ने खबरों का संज्ञान लेते हुए कुलपति प्रो सोनिया नित्यानंद ने जाँच कमेटी गठित करने के आदेश जारी कर दिए थे। जिसपर कमेटी द्वारा जाँच में फर्म संचालन का पर्दा उठा और फर्म को हमेशा के लिए संस्थान द्वारा खरीदारी पर रोक लगा दी गयी है।

इसके अलावा संस्थान प्रशासन ने संवेदना दिखाते हुए चाचा भतीजे की जगह बरकरार रखते हुए अन्य कोई कार्रवाई से वंचित कर दिया है। ज्ञात हो कि जब फर्म बीते वित्तीय वर्ष 2024-2025 में लगभग 18 लाख से अधिक का कारोबार भी कर डाला हो। जिसमें संस्थान के जिम्मेदारों को इसकी भनक तक नहीं लगी हो। ऐसे में कार्रवाई भी धक्का मारने जैसा प्रतीत होता है। जब मरीजों को दवा लेना हो तो लाइन में लगना पड़ता है और बीमारी का इलाज कराना हो तो डॉक्टर के पास जाते हैं। ऐसे ही मरीज लाइन में लगकर डाइरेक्ट पहुंच जाए तो दवा तो छोड़ो उसे फटकार ही मिलेगी।

लेकिन जब नियमों में भी संवेदना जुडी हो तो कार्रवाई आखिर कौन करेगा। जिस तरह माली के पद पर नियुक्ति मिली हो और कार्य वित्त विभाग का संभालना यह किस नियमावली में आता है इसे भी बताना चाहिए। जिससे कोई भी अनुशासन का पालन करना या नियमों को ताख पर रखना भी अन्य अधिकारी कर्मचारी कैसे पालन करेंगे। इस तरीके से सभी कर्मचारी सांठगांठ बनाने का जरिया निकालने का प्रयास करेंगे। वहीं जब इस मामले को लेकर सूत्रों से जानकारी मांगी तो संस्थान की संवेदना वाली कार्रवाई को देखकर साबित हो गया कि चाचा भतीजे की जड़े संस्थान में कहाँ तक जुडी हुई हैं।

वहीं हाल ही कैबिनेट बैठक में स्थानांतरण नीति लागू की गयी है लेकिन स्वतंत्र संस्थान इसका कितना अनुपालन करता है यह उस पर निर्भर करता है। वहीं चाचा भतीजे पर आरोप तो सिद्ध हुए लेकिन नौकरी में अंगद की तरह पैर जमा दिया है। जानकारों का मानना है कि लंबे समय से एक जगह पर जमे रहना भ्रष्टाचार को उदय होना माना जाता है। इसके लिए संस्थान प्रशासन को नियमों सुचारु रूप से लागू करना होगा तभी अन्य अधिकारी, कर्मचारियों को नसीहत मिल सकेगी।

संस्थान में चाचा भतीजे की फर्म से खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी गयी है। इस फर्म से संस्थान कोई भी खारीदारी नहीं होगी।

डॉ. केके सिंह

प्रवक्ता केजीएमयू लखनऊ

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