सीकेडी का जल्द पता चलने पर उपचार संभव
पीजीआई में मधुमेह रोगियों में गुर्दे की बायोमार्कर से की पहचान

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। राजधानी में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने मधुमेह क्रॉनिक किडनी रोग निदान के बारे में गहन मंथन किया गया। बुधवार को एसजीपीजीआई में डॉक्टर स्वस्ति तिवारी केयर प्रोजेक्ट कार्डिनेटर द्वारा सीकेडी शोध के साथ उपचार करने के तरीके साझा किए। डॉ तिवारी ने कहा कि मधुमेह क्रोनिक किडनी रोग के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।
मधुमेह से पीड़ित तीन में से एक व्यक्ति की डायग्नोसिस CKD के रूप में की जाती है, जो गुर्दे की विफलता और हृदय संबंधी जटिलताओं का कारण बनता है। CKD का शीघ्र पता लगने से समय पर उपचार और प्रबंधन सुनिश्चित हो सकता है।
ICMR सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च एंड एक्सीलेंस (CARE) के तहत SGPGI में मौलिक्यूलर मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलाजी विभाग में किए गए एक शोध में मधुमेह के रोगियों में गुर्दे की बीमारी के प्रारंभिक निदान की क्षमता वाले बायोमार्कर की पहचान की गई है।
प्रोफेसर स्वस्ति तिवारी, केयर (CARE) प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर के मार्गदर्शन व निरीक्षण मे केयर टीम के सदस्यो द्वारा स्टडी को पूर्ण किया गया। इस टीम में पुड्डुचेरी के कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग के सदस्यों के साथ संजय गांधी पीजीआई से डाक्टर धर्मेंद्र के चौधरी, डाक्टर सुखान्शी कान्डपाल, डाक्टर दीनदयाल मिश्रा और डाक्टर बिश्वजीत साहू शामिल थे। वहीं
डाक्टर स्वस्ति तिवारी पीजीआई के मौलिक्यूलर मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलौजी विभाग प्रमुख ने बताया कि ये बायोमार्कर इस मायने में अद्वितीय हैं कि इनमें CKD की शुरुआत से पहले ही इसका अनुमान लगाने की क्षमता है। ये बायोमार्कर मानव मूत्र में नैनो आकार के पुटिकाओं (बाल से हजारों गुना छोटे) के अंदर पाए जाते हैं, जिससे उनका निदान non Invasive हो जाता है। इसके अध्ययन 2019 में शुरू किए गए थे, जिसमें लखनऊ और पुड्डचेरी के समुदायों से लगभग 1000 मधुमेह रोगियों को चिह्नित किया गया था। इन रोगियों को लगभग पांच वर्षो तक फॉलो अप में रखा गया।
इस तकनीक को पेटेंट कराने के लिए भारतीय पेटेंट कार्यालय में मार्च 2024 आवेदन किया गया है।
आईसीएमआर ने वर्ष 2023-24 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस नवाचार को शामिल किया है।
उल्लेखनीय है कि एसजीपीजीआई के मौलिक्यूलर मेडिसिन और बायोटेक्नौलौजी विभाग की प्रयोगशाला भारत में पहली प्रयोगशाला थी। जिसने किडनी रोग के निदान में मूत्र एक्सोसोम की उपयोगिता को प्रदर्शित किया था।
विभाग द्वारा देश में रोगों के शीघ्र निदान के लिए क्षमता निर्माण की भी पहल की गई। साथ ही केयर परियोजना के माध्यम से विकसित तकनीकी कौशल प्रदान करने के लिए 2023-24 के बीच दो राष्ट्रीय क्षमता निर्माण कार्यशालाएँ भी आयोजित की गयी।



