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किसानों की आय में वृद्धि करने को वैज्ञानिकों ने नई खोज 

एनबीआरआई वैज्ञानिकों ने विकसित किया विश्व का पहला पिंक बॉलवर्म प्रतिरोधी कपास

 

व्यवसायीकरण को ले कंपनी के साथ की साझेदारी

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। राजधानी के वैज्ञानिकों की टीम ने कपास की खोज में बड़ी सफलता अर्जित की है। इस सफलता से किसानों की आय में वृद्धि के साथ रोजगार के दरवाजे भी खुलेंगे। शनिवार को यह जानकारी सीएसआईआर- एनबीआरआई में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान संस्थान निदेशक डॉ.अजीत शासनी एवं मुख्य वैज्ञानिक डॉ. पीके सिंह द्वारा संयुक्त रूप से दी गयी । इस मौके पर डॉ. राकेश तुली न्यू चंडीगढ़, डॉ. अश्विन काशीकार मेसर्स अंकुर सीड्स प्राइवेट लिमिटेड उपस्थित रहे। वहीं निदेशक ने बताया कि संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. पीके सिंह एवं उनकी टीम द्वारा एक नए कीटनाशक जीन विकसित किया है। यह स्वजनित जीन, पिंक बोलवर्म के विरुद्ध अधिक रूप से प्रभावी है एवं इसका पिंक बोलवर्म प्रतिरोधक क्षमता के लिए पूर्व विकसित बोलगार्ड 2 कपास की तुलना में सफलतापूर्वक परीक्षण भी किया गया है। संस्थान में हुए विभिन्न प्रयोगशाला परीक्षणों से हमें यह भी पता चला कि नया जीएम कपास पिंक बोलवर्म के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी है, साथ ही अन्य कीड़ों जैसे कपास के पत्ते के कीड़े और फॉल आर्मीवर्म से भी सुरक्षा प्रदान करता है।डॉ. शासनी ने कहा कि कृषि क्षेत्र के लिए एक अभूतपूर्व विकास की दिशा में संस्थान के वैज्ञानिकों ने विश्व के पहले आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) कपास पौधे को बनाने में सफलता हासिल की है जो पिंक बॉलवर्म (पीबीडब्ल्यू) के लिए पूरी तरह से प्रतिरोधी है । पिंक बॉलवर्म एक कीट हैं। जिसने भारत, अफ्रीका और एशिया में कपास की खेती करने वाले किसानों को लंबे समय से परेशान करता रहा है। डॉ. पीके सिंह ने बताया कि भारत में वर्ष 2002 में जीएम कपास के आने के बाद, सेंट लुइस, यूएसए की कंपनी मोनसेंटो के साथ संयुक्त रूप से विकसित बोलगार्ड 1 और बोलगार्ड 2 जैसी किस्मों ने कुछ बोलवर्म प्रजातियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता लाने में काफी प्रयास किया है। हालांकि, समय के साथ, इन किस्मों ने पिंक बोलवर्म (पीबीडब्लू) के खिलाफ पूर्ण प्रतिरोधकता हासिल करने में असमर्थ रही हैं। पिंक बोलवर्म को भारत में स्थानीय रूप से गुलाबी सुंडी के रूप में जाना जाता है। समय के साथ, पिंक बोलवर्म ने इन किस्मो में उपयोग किए जाने वाले क्राई 1एसी और क्राई 2एबी प्रोटीन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को भी विकसित कर लिया है। जिससे भारत में कपास की पैदावार में काफी गिरावट दर्ज की गयी है। उन्होंने कहा कि इन्हीं कमियों को दूर करते हुए एक नए कीटनाशक जीन विकसित किया गया है। वहीं संस्थान निदेशक ने बताया कि इस अग्रणी तकनीक की क्षमता को पहचानते हुए, नागपुर स्थित कृषि-जैव प्रौद्योगिकी कंपनी मेसर्स अंकुर सीड्स प्राइवेट लिमिटेड को सीएसआईआर-एनबीआरआई की इस तकनीकी का हस्तांतरण किया है। जिसमें अंकुर सीड्स विनियामक दिशा-निर्देशों के अनुसार सुरक्षा अध्ययनों पर सहयोग करेगा और अपने स्वामित्व वाली संकर कपास किस्मों में एनबीआरआई तकनीक के साथ क्षेत्र परीक्षणों से व्यापक बहु स्थान डेटा उत्पन्न करेगा। निदेशक ने कहा कि एक बार जब ये अध्ययन तकनीक की सुरक्षा की पुष्टि करेंगे, तो बीजों को आगे की विविधता और संकर विकास के लिए कई बीज कंपनियों को लाइसेंस दिया जाएगा। जिससे व्यापक व्यावसायीकरण हो सकेगा।

किसानों को होगा आर्थिक लाभ..

इस तकनीकी से फसल सुरक्षा से अधिक पैदावार में बीज कंपनियों द्वारा संकर कपास किस्मों को पेश किए जाने के बाद, कपास की उत्पादकता में लगभग 20 फीसदी की वृद्धि हो सकती है, जबकि वर्तमान उपज लगभग 420 से 450 किलोग्राम है और इसमें गिरावट का रुझान जारी है। इसमें अधिक लिंट की पैदावार से किसानों की आय में लगभग 10 हज़ार प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हो सकती है। इस प्रकार, सीएसआईआर की नई तकनीक कपास उत्पादकों की आजीविका में नाटकीय रूप से सुधार कर सकती है। साथ ही बार-बार कीटनाशकों के छिड़काव की आवश्यकता को कम करके, किसानों को प्रति हेक्टेयर लगभग 2 हज़ार की बचत भी होगी। इस प्रकार नई तकनीक लागत में कमी और पर्यावरणीय स्थिरता दोनों का समर्थन करती है। उन्होंने बताया कि कपास, एक उच्च मूल्य वाली नकदी फसल है जो भारत की निर्यात आय में महत्वपूर्ण योगदान देती है और राजस्व पैदा करने वाली शीर्ष तीन फसलों में से एक है। संस्थान द्वारा की गई इस सफलता के माध्यम से यह अपनी आर्थिक शक्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि भारत राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाता है और इस स्वदेशी, विश्व स्तर पर अद्वितीय जीएम तकनीक की खोज टिकाऊ कृषि में एक महत्वपूर्ण छलांग है। गुलाबी बॉलवर्म के लगातार खतरे से कपास की रक्षा करके,संस्थान का नवाचार न केवल लाखों किसानों की आजीविका की रक्षा करता है, बल्कि दुनिया भर में कीट प्रतिरोध के लिए एक नया मानदंड भी स्थापित करेगा । यह सफलता आत्मनिर्भर भारत के तहत भारतीय नवाचार के साथ उच्च पैदावार, बेहतर किसान आय और स्वच्छ पर्यावरण का भविष्य निर्धारित होगा।

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