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 कुपोषित बच्चों के लिए एनआरसी बना सहारा

एनआरसी की पहल से बच्चों में जागी नई किरण

 

लखनऊ, भारत प्रकाश न्यूज़। कुपोषित बच्चों के लिए एनआरसी उम्मीद की किरण बनकर सहारा दे रहा है।

चिनहट ब्लॉक के समता कॉलोनी की डेढ़ साल की दिव्यांशी तेज बुखार और कमजोरी से जूझ रही थी, तब उसकी मां घबराकर उसे राम प्रकाश गुप्त मातृ एवं शिशु राज्य रेफरल अस्पताल (आरएमएल) ले गयी।

डॉक्टरों के जाँच करने पर पता चला कि दिव्यांशी को गंभीर यूरिन इंफेक्शन के साथ-साथ अति गंभीर कुपोषण (सैम) भी है। तुरंत उसे पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भर्ती किया गया।

एनआरसी में इलाज और पोषण प्रबंधन के बाद सिर्फ 15 दिनों में उसका वजन 7.1 किलो से बढ़कर 7.7 किलो हो गया। दिव्यांशी की मां बताती हैं, “पहले बच्ची केवल मेरा दूध और बोतल का दूध पीती थी।

कुछ भी ठोस नहीं खाती थी। यहाँ डॉक्टरों ने दलिया, दाल, सूजी, लैय्या, खिचड़ी खिलाना शुरू किया और मुझे भी सिखाया कि कैसे पौष्टिक खाना बनाकर बच्ची को खिलाना है। अब वह खाना खाने लगी है और धीरे-धीरे वजन भी बढ़ रहा है।

डॉ. मिलिंद वर्धन, महाप्रबधंक, बाल स्वास्थ्य, उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन बताते हैं कि राज्य सरकार ने पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में सैम और मैम (मध्यम गंभीर कुपोषण) से निपटने के लिए सामुदायिक और संस्थागत (फेसिलिटी बेस्ड) उपाय लागू किए हैं।

इनमें एनआरसी के साथ गृह आधारित देखभाल, आईसीडीएस, पोषण अभियान, अंतर्विभागीय समन्वय और सरकारी योजनाओं से लाभार्थियों को जोड़ना शामिल है।

एनआरसी में चिकित्सीय जटिलताओं सहित वाले सैम और मैम बच्चों का इलाज किया जाता है और इसकी तीन महत्वपूर्ण अवस्थाएँ होती हैं। जिसमें

स्टेबिलाइजेशन बच्चे को भर्ती कर इलाज शुरू किया जाता है। ट्रांजिशन और रिहेबिलिटेशन बच्चे को उर्जायुक्त आहार दिया जाता है, उसकी ग्रोथ पर काम होता है और मां/देखभालकर्ता को काउंसलिंग दी जाती है। कम्युनिटी फॉलो-अप डिस्चार्ज के बाद अगले दो माह तक आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और एनआरसी टीम बच्चे पर निगरानी रखती है।

वर्तमान में 75 जनपदों में कुल 84 एनआरसी हैं जहाँ हर साल औसतन 17000 हजार बच्चे भर्ती होते हैं। जिनमें से लगभग 83 फीसद बच्चे स्वस्थ होकर डिस्चार्ज किए जाते हैं। मध्यम चिकित्सीय जटिलताओं से ग्रसित सैम बच्चों के उपचार के लिए ब्लाक स्तर पर मिनी एनआरसी स्थापित किये गए हैं। वहीं

आरएमएल के एनआरसी की नोडल अधिकारी डॉ. शितान्शु श्रीवास्तव बताती हैं कि यहाँ 10 बेड का एनआरसी इसी साल जनवरी से शुरू हुआ है। जनवरी से अगस्त तक 259 बच्चे यहाँ पर भर्ती हुए हैं जिनमे से 253 बच्चे यहाँ से स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं।

यह तृतीयक देखभाल इकाई है। इसलिए जन्मजात हृदय रोग, न्यूरोलॉजिकल बीमारियों सहित जटिल समस्याओं वाले बच्चे भी यहाँ आते हैं। इलाज के साथ उनका न्यूट्रिशन मैनेजमेंट भी किया जाता है।

एनआरसी की चिकित्सा अधिकारी डॉ. साक्षी सिंह बताती हैं कि करीब 20 से 30 प्रतिशत बच्चे आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आरबीएसके के माध्यम से समुदाय से यहाँ आते हैं। वे कहती हैं, “जन्मजात बीमारियों से पीड़ित कुपोषित बच्चों का वजन धीरे-धीरे बढ़ता है, इसलिए उन्हें 14 दिन तक भर्ती रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

करीब 5 से 10 प्रतिशत बच्चे फिर से एनआरसी में आते हैं। इसकी वजह है कि परिवार की शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति। इसलिए हमारी कोशिश रहती है कि हम मां या देखभालकर्ता को अच्छे से समझाएँ ताकि वे घर और समुदाय दोनों जगह पोषण का सही संदेश पहुँचा सकें।

एनआरसी की फीडिंग डिमाँस्ट्रेटर स्तुति बताती हैं कि यहाँ अधिकतर ऐसे बच्चे आते हैं। जिन्हें समय पर ऊपरी आहार शुरू नहीं कराया जाता। केवल मां का दूध या बोतल का दूध ही देते रहने से कुपोषण बढ़ता है।

वह बताती हैं कि हमने पहल की है और बच्चों को रिफाइंड आयल की जगह कोकोनट आयल देते हैं क्योंकि इसमें मीडियम चेन ट्राईग्लिसराइड होते हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए लाभदयक होते हैं। इसके साथ ही शक्कर की जगह गुड़ देते हैं।

डॉ. शितान्शु आगे की योजना साझा करते हुए कहती हैं, “हम एनआरसी को रिसर्च और ट्रेनिंग सेंटर की तरह विकसित करना चाहते हैं जिससे कि बच्चों की डाइट और बेहतर हो सके। हमारी योजना है कि डिस्चार्ज के बाद भी बच्चों का लंबे समय तक फॉलो-अप किया जाए।

साथ ही हम यह अध्ययन करना चाहते हैं कि मिलेट से बनी डाइट और सामान्य अनाज से बनी डाइट से बच्चों के स्वास्थ्य में कितना फर्क आता है। हमें चाहिए कि बच्चे का वजन केवल फैट से नहीं बल्कि प्रोटीन से बढ़े। इसके लिए टीम और संसाधनों को मजबूत करने की आवश्यकता है।

एनआरसी की यह पहल न केवल बच्चों के जीवन को बचा रही है बल्कि माताओं को भी पोषण का पाठ पढ़ाकर पूरे समुदाय को जागरूक कर रही है।

एनआरसी में यह सेवाओं में

एनआरसी में भर्ती बच्चों की माताओं या देखभाल करने वालों को केंद्र पर भोजन के साथ 50 रुपये प्रतिदिन की राशि प्रदान की जाती है, जो सीधे उनके खाते में जमा होती है। इसके अलावा, 15-15 दिनों पर चार बार फॉलो-अप के लिए 40 रूपये और भोजन तथा माताओं व देखभाल करने वाले को 100 रुपये दिए जाते हैं।

एनआरसी में बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास की निगरानी की जाती है, और माताओं को स्तनपान और ऊपरी आहार के महत्व के बारे में परामर्श दिया जाता है।

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