उत्तर प्रदेशजीवनशैली

कम दिखाई पड़ने का मुख्य कारण ग्लूकोमा

आरएमएल स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कम दिखाई पड़ने की बताई बारीकियां 

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। देश दुनिया कम दिखाई पड़ने के कारणों पर जानकारी साझा की गई। बुधवार को डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के नेत्र विभाग द्वारा कार्यशाला आयोजित की गई। जिसे संस्थान निदेशक प्रो.सीएम सिंह के निर्देशन में अंतर्राष्ट्रीय विकलांग व्यक्ति दिवस के उपलक्ष्य में जागरूकता बढ़ाने के लिए किया गया। बता दें कि आईडीपीडी विकलांग लोगों को अधिकार दिलाने के लिए प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को मनाया जाता है। सभी पहलुओं में उनकी स्थिति के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंताओं में से एक अंधापन है। अंधेपन के अधिकांश बोझ से बचा जा सकता है। अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 441 मिलियन दृष्टिबाधित लोग हैं। भारत में 137 मिलियन से अधिक लोग ऐसे हैं जिनकी दृष्टि निकट दृष्टिबाधित है और 79 मिलियन लोग दृष्टिबाधित हैं। कम दृष्टि तब होती है जब किसी व्यक्ति की दृष्टि को मानक अपवर्तक सुधार के साथ ठीक नहीं किया जा सकता है। यह किसी भी उम्र में विकसित हो सकता है। कम दृष्टि वाले लोग पूरी तरह से अंधे नहीं हो सकते हैं, इसलिए उन्हें बची हुई दृष्टि का सर्वोत्तम उपयोग करने में मदद करना महत्वपूर्ण है। भारत में कम दृष्टि के मुख्य कारण ग्लूकोमा, उम्र से संबंधित धब्बेदार अध: पतन और वयस्कों में मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी हैं। बच्चों में कॉर्टिकल दृष्टि हानि, एम्ब्लियोपिया, समय से पहले रेटिनोपैथी और वंशानुगत रेटिनल विकार मुख्य अपराधी हैं। कार्यशाला में मुख्य अतिथि संस्थान निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कम दृष्टि पर कारणों के बारे में बात की। उन्होंने अंधेपन के रोकने वाले कारणों का शीघ्र पता लगाने और रोकथाम के महत्व पर जोर दिया।डॉ. सिंह ने कहा कि वह नेत्र विभाग की सुविधा बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं ताकि अधिक से अधिक मरीजों को नवीनतम तकनीकों का लाभ मिल सके। इस मौके पर डॉ. एके सिंह, सीएमएस, डॉ. वीरेंद्र सिंह गोगिया मौजूद रहे।वहीं आयोजन टीम में चेयरपर्सन डॉ. प्रियंका राय, प्रोफेसर प्रमुख, सर्जरी विभाग, नेत्र विज्ञान विभाग की फैकल्टी डॉ. शिखा अग्रवाल, सह-अध्यक्ष के रूप में एसोसिएट प्रो. प्रीति गुप्ता, एसोसिएट प्रोफेसर, आयोजन सचिव और डॉ. प्रोलिमा ठकर,वैज्ञानिक समिति में सहायक प्रो. शबरी पाल, डॉ. इंदु अहमद शामिल रहे । साथ ही एसएएम आई अस्पताल की निदेशक डॉ. आरती एलहेंस ने कम दृष्टि वाले बच्चे से कैसे संपर्क किया जाए, इस पर बात की। उन्होंने दृष्टिबाधित ऐसे बच्चों की विभिन्न जांच विधियों और पुनर्वास पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने मोतियाबिंद, रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी और एम्ब्लियोपिया जैसी बचपन की कई आंखों की बीमारियों की शीघ्र जांच और पता लगाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इनमें से बहुत सी स्थितियों का अगर समय पर इलाज किया जाए तो अंधेपन को रोका जा सकता है। डॉ. इंदु अहमद ने कम दृष्टि वाले विभिन्न उपकरणों के बारे में बताया।

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