अंतर्राष्ट्रीयउत्तर प्रदेश

हर गंभीर मरीज को वेंटिलेटर पर नहीं रखते – डॉ फरहा

शोध अनुभवो को साझा करने में करें सहयोग - कुलपति

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। चिकित्सा शोध क्षेत्र में विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए। मंगलवार को केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में अमेरिका की डॉ फरहा खान का एक व्याख्यान आयोजित किया गया। बता दें कि डॉ फरहा भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक एवं प्रसिद्ध चिकित्सक है। इस व्याख्यान का आयोजन सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस फॉर ड्रग रेजिस्टेंस टीबी केयर तथा पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन सेंटर प्रदेश का पहला रिहैबिलिटेशन सेंटर के द्वारा आयोजित किया गया था। कार्यक्रम. के दौरान लगभग 100 चिकित्सक, शोध छात्र तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ता उपस्थित रहे। साथ ही विभाग के पूर्व चिकित्सकों, छात्रों तथा अमेरिका के चिकित्सकों ने ऑनलाइन लगभग 400 से अधिक लोगों ने प्रतिभाग किया।वहीं

डॉ फरहा ने बताया कि उनके देश में दूसरे देशों से कई बार टीबी के गंभीर रोगी उनके अस्पताल में आ जाते हैं। जिनका इलाज करने का उनका अनुभव है लेकिन वह चाहती हैं कि इस संस्थान के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग से टीबी के बारे में और अनुभव प्राप्त करें । उन्होने अपने कैरियर के एक महत्वपूर्ण एक्स डीआर टीबी रोगी के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने सीओपीडी के बारे में भी अमेरिका में होने वाले शोध और नवीन उपचार की जानकारी से अवगत कराया। उन्होने बताया गया कि हम हर गंभीर रोगी को वेंटिलेटर पर नहीं रखते है। और अगर रखना भी पड़ता है तो उसको कम समय के लिए रखते हैं। सांस के हर रोगी को वेंटिलेटर से फायदा नहीं पहुंचता है और ना ही हर सांस के गंभीर रोगी को वेंटिलेटर पर रखना चाहिए। जिस रोगी के फेफड़ों में वेंटिलेटर को झेलने की क्षमता ही नहीं है। ऐसे रोगियों को वेंटिलेटर पर नहीं रखना चाहिए, लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखने से वेंटिलेटर एसोसिएटेड निमोनिया होने का खतरा हो जाता है। जिससे कि रोगी की तबीयत और खराब हो सकती है।इसी क्रम में कार्यक्रम संयोजक और विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत ने बताया की डॉ फरहा को इतने लंबे कार्यकाल में केवल कुछ महत्वपूर्ण एक्स डीआर टीबी रोगी के उपचार करने का अनुभव है। वहीं पूरी दुनिया के 29 प्रतिशत एक्स डीआर टीबी के रोगी भारत में पाए जाते हैं और भारत, अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को इसके संबंध में अपने अनुभव के आधार पर प्रशिक्षित भी कर सकता है।

डॉ सूर्यकांत ने बताया कि आज विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत पूरी दुनिया भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम का लोहा मानने लगी है और ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम की प्रशंसा की है। जिसमें यह बताया गया है कि दुनिया में भारत के सबसे ज्यादा टीबी के रोगी पाए जाते हैं फिर भी भारत ने 17.3 प्रतिशत टीबी के रोगियों की संख्या कम करने में सफलता पाई है और टीबी की मृत्यु दर को भी 18 प्रतिशत कम करने में सफलता पाई है। डॉ फरहा ने भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम की सफलता के लिए बधाई दी। साथ ही विशिष्ट अतिथि प्रो कमर रहमान जो कि इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टॉक्सिकोलॉजिकल रिसर्च की पूर्व उपनिदेशक ने बताया कि वायु प्रदूषण सांस की बीमारियों के लिए बहुत बड़ा खतरा है. उन्होंने सभी लोगों को धूमपान न करने तथा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की सलाह दी। वहीं संस्थान कुलपति सोनिया नित्यानन्द ने रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग को इस अंतरराष्ट्रीय व्याख्यान के लिए बधाई दी और डॉ फरहा व डॉ सूर्यकांत से यह आग्रह किया कि टीबी और सांस के रोगों पर आपस में सहयोग करें और एक दूसरे के शोध कार्यों की जानकारी साझा करें। ज्ञात रहे कि डॉ फरहा लखनऊ की मूल निवासी हैं और अमेरिका में सांस के रोगों की एक बड़ी विशेषज्ञ मानी जाती है।

इस अवसर पर विभाग के चिकित्सक डा आरएएस कुशवाहा, डा.राजीव गर्ग, डा. अजय कुमार वर्मा, डा. आनन्द श्रीवास्तव, डा. ज्योति बाजपेई एवं कार्यक्रम के क्वाडिनेटर डा पंखुडी, डा. शिवम श्रीवास्तव , समस्त जूनियर डाक्टर्स, शोध छात्र उपस्थित रहें। कार्यक्रम के अंत में आयोजन सचिव डॉ अंकित कुमार ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया ।

Related Articles

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Back to top button