रुक्मणी भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में पाकर हुई अति प्रसन्न – अप्रमेय प्रपन्नाचार्य
श्रीकृष्ण ने रुक्मणी हरण कर, किया पाणि ग्रहण संस्कार

रामनगर,बाराबंकी। लखनऊ, भारत प्रकाश न्यूज़। रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाकर अति प्रसन्न हो गई।
रुक्मणी का पत्र पाकर भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी हरण करने के लिए गिरिजा मंदिर की ओर चल दिए जहां से हरण करके उन्होंने रुक्मणी के साथ पाणि ग्रहण संस्कार किया,रुक्मणी भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाकर अत्यंत प्रसन्न हुई।
मंगलवार को यह जानकारी धमेडी़ मोहल्ला स्थित लक्ष्मी नारायण शुक्ला के आवास पर श्रीमद् भागवत कथा प्रसंग के दौरान कथा वाचक स्वामी अप्रमेय प्रपन्नाचार्य महाराज ने रुक्मणी कथा प्रसंग में दी। उन्होंने कहा कि विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री रुक्मणी अत्यंत रूपवती थी, जिसका विवाह उसका भाई रुक्मी उसकी इच्छा के विरुद्ध शिशुपाल से कराना चाहता था।
वही रुक्मणी भगवान श्रीकृष्ण से मन ही मन प्रेम करती थी और उन्हीं को उसने पति रूप में स्वीकार भी कर लिया था। रुक्मी भगवान श्री कृष्ण से शत्रुत्ता रखता था वह उसका विवाह शिशुपाल से कराना चाहता था, क्योंकि शिशुपाल भी भगवान श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था ।
भीष्मक ने अपने बड़े पुत्र की इच्छानुसार रुक्मणी का विवाह शिशुपाल के साथ करने का निश्चय कर लिया उसने शिशुपाल के पास संदेश देकर विवाह की तिथि भी निश्चित कर दी रुक्मणी को जब इस बात का पता लगा कि उसका विवाह शिशुपाल के साथ निश्चित हुआ है तो वह बहुत दुखी हुई उसने अपना निश्चय प्रकट करने के लिए दूत भेज कर पत्र में लिखा हे ! नंद नंदन मैंने आपको ही पति रूप में वरण किया है।
मैं आपको छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ विवाह नहीं कर सकती मेरे पिता मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरा विवाह शिशुपाल के साथ कराना चाहते हैं। विवाह की तिथि भी निश्चित हो गई है, मैं कुल की रीति के अनुसार विवाह के पूर्ण होने वाली वधु को नगर के बाहर गिरजा का दर्शन करने के लिए जाना पड़ता है।
मैं भी विवाह के वस्त्रो में सज धज कर दर्शन करने के लिए गिरजा के मंदिर में जाऊंगी। मैं चाहती हूं आप गिरजा के मंदिर पहुंचकर मुझे पत्नी के रूप में स्वीकार करें, यदि आप नहीं पहुंचेंगे तो मैं अपने प्राणों का परित्याग कर दूंगी।
रुक्मणी का पत्र पाकर भगवान श्रीकृष्ण बलराम के साथ बताए गए स्थान पर पहुंचे। जहां पर शिशुपाल और भीष्मक की सेना के साथ उनका भयंकर युद्ध हुआ और अंत में रुक्मणी का हरण करके द्वारिका पुरी को ले आए। जहां पर विधि विधान पूर्वक उनका पाणि ग्रहण संस्कार संपन्न हुआ । इसी क्रम में महाराज ने श्रीकृष्ण रासलीला कुब्जा उद्धार कंश वध की कथा का उपस्थित श्रोताओं को रसपान कराया ।
इस अवसर पर आयोजक लक्ष्मी नारायण शुक्ला स्वामी शिवानंद महाराज, अनिल अवस्थी, मधुबन मिश्रा, आशीष पांडे, बृजेश शुक्ला, दुर्गेश शुक्ला, गोपाल शुक्ला, उमेश पांडे, शुभम जायसवाल, लवकेश शुक्ला, शिवम शुक्ला आदि मौजूद रहे।



