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मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना बहुत जरूरी

कल विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। मानसिक रूप से स्वस्थ रहोगे तभी शरीर स्वस्थ रहेगी। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य एक सिक्के के दो पहलू के समान हैं। सुडौल और आकर्षक काया की असली सुन्दरता तभी है जब व्यक्ति मानसिक रूप से भी पूर्ण स्वस्थ हो।

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति पूरी तरह से ध्यान देने के बारे में याद दिलाने के लिए ही हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। गुरुवार को यह जानकारी

पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर मुकेश शर्मा ने दी। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि जीवन शैली को नियमित करने के साथ ही योग, ध्यान, प्राणायाम और शारीरिक श्रम को दिनचर्या में अवश्य शामिल किया जाए।

रोजमर्रा के कामकाज की व्यस्ततता के बाद भी परिवार के लिए समय अवश्य निकालें । खाना परिवार के साथ बैठकर खाएं और कुछ अपनी कहो और कुछ उनकी सुनो नियम का पालन करें।

चिकित्सकों का मानना है कि मानसिक अस्वस्थतता के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं, जैसे- नींद कम आना, उलझन, घबराहट, हीन भावना से ग्रसित होना, जिन्दगी के प्रति नकारात्मक सोच का विकसित होना, एक ही विचार मन में बार-बार आना, एक ही कार्य को बार-बार करने की इच्छा होना, अनावश्यक डर लगना, शक होना, कानों में आवाज आना, मोबाइल और नशे की लत होना आदि।

इस तरह के लक्षण नजर आने पर चिकित्सक से परामर्श जरूर लेना चाहिए ताकि समस्या को जल्दी से जल्दी दूर किया जा सके। इसको लेकर कोई भ्रम या भ्रान्ति मन में नहीं पालनी चाहिए। झाड़-फूंक आदि से बचना चाहिए। चिंता और तनाव से सिर दर्द, माइग्रेन, उच्च या निम्न ब्लड प्रेशर, ह्रदय से जुड़ी समस्याएं, मोटापा आदि की समस्या पैदा हो सकती है।

इसके लिए जरूरी है कि तनाव व चिंता पैदा करने वाले कारणों से दूर रहें। सामाजिक भेदभाव के कारण भी मानसिक विकार को लोग छिपाते हैं और मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं।

आज बच्चे पढ़ाई में अव्वल आने को लेकर तो युवा करियर, रोजगार व तरक्की को लेकर किसी न किसी तरह के मानसिक दबाव में हैं। कम से कम समय में सब कुछ हासिल कर लेने की होड़ आज बड़ी तादाद में लोगों को मानसिक रूप से अस्वस्थ बना रही है।

विभिन्न प्रतियोगी और प्रवेश परीक्षाओं में परिवार वालों के मनमुताबिक अंक न हासिल कर पाना बच्चों पर मानसिक दबाव और चिंता को और बढ़ाता है। ऐसे में परिवार की भी बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चे पर अनावश्यक दबाव बनाने के बजाय उनको उनके मनमुताबिक दिशा में आगे बढ़ने में सहयोगी की भूमिका निभाएं।

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