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 अध्ययन में करीब 89 प्रतिशत किशोरियां एनीमिया से ग्रसित -डॉ. अंजू

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। शहरी ग्रामीण क्षेत्रों की किशोरियों पर अध्ययन किया गया। रविवार को

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की अध्यक्ष प्रो. अंजू अग्रवाल के संरक्षण में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एडोल्सेंट हेल्थ एंड डेवलपमेंट क्वीन मैरी हॉस्पिटल द्वारा 150 शहरी और ग्रामीण किशोरियों पर व्यापक अध्ययन किया गया।

यह अध्ययन डॉ. सुजाता देव (नोडल ऑफिसर और काउंसलर सौम्या के नेतृत्व में किया गया। वहीं

डॉ. अंजू बताती हैं कि अध्ययन में सामने आया कि करीब 89 प्रतिशत किशोरियां एनीमिया से पीड़ित हैं, जो केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित नहीं बल्कि शहरी किशोरियों में भी उतनी ही गंभीर समस्या है।

आर्थिक रूप से सक्षम परिवारों की किशोरियों में भी यह समस्या पाई गई। यह स्पष्ट हुआ कि गरीबी ही नहीं बल्कि खानपान की आदतें भी एनीमिया के प्रमुख कारण हैं।

हरी सब्ज़ियों और विटामिन सी के कम सेवन, आयरन-फोलिक एसिड और अल्बेंडाज़ोल टैबलेट्स का अनियमित उपयोग, तथा जंक फूड की बढ़ती प्रवृत्ति ने समस्या को और गहरा कर दिया है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि मासिक धर्म स्वास्थ्य में अनियमितता और पोषण की कमी का सीधा संबंध है।

किशोरियों पर हुए अध्ययन में यह मिला आकड़ा..

89% किशोरियां एनीमिया से ग्रसित (हल्का एनीमिया – 26.6%, मध्यम एनीमिया – 42.6%, गंभीर एनीमिया – 19.3%) केवल 26% किशोरियां ही रोज़ाना हरी सब्ज़ियाँ खाती हैं, और मात्र 16.6% ही विटामिन सी का सेवन करती हैं।

25% किशोरियां प्रतिदिन जंक फूड खाती हैं, जबकि 71% ने स्वीकार किया कि वे कभी-कभी नियमित भोजन की जगह जंक फूड लेती हैं।

52.6% किशोरियों ने IFA टैबलेट और 43.3% ने अल्बेंडाज़ोल का सेवन किया।

74% किशोरियां एनीमिया के बारे में जागरूक थीं, फिर भी प्रभावित रहीं। साथ ही

डॉ. सुजाता देव बताती हैं कि किशोरावस्था जीवन का महत्वपूर्ण चरण है। इस दौरान कुपोषण से न केवल लंबाई, वजन और मानसिक एकाग्रता प्रभावित होती है, बल्कि यह भविष्य की शिक्षा, कार्यक्षमता और मातृत्व स्वास्थ्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। बाहर के खाद्य पदार्थ जैसे पिज़्ज़ा, बर्गर, चिप्स आदि पोषणहीन हैं और थकान, संक्रमण व हार्मोनल असंतुलन जैसी समस्याओं को बढ़ाते हैं।

जानें सुझाव..

स्कूलों और समुदाय स्तर पर पोषण शिक्षा और हेल्थ काउंसलिंग को अनिवार्य बनाया जाए।

किशोरियों को नियमित रूप से आयरन-फोलिक एसिड और अल्बेंडाज़ोल उपलब्ध कराया जाए।

परिवारों को संतुलित आहार और जंक फूड से बचाव के महत्व के बारे में जागरूक किया जाए।

किशोरियों के स्वास्थ्य में निवेश करना ही स्वस्थ समाज और सशक्त राष्ट्र की दिशा में पहला कदम है।

काउंसलर सौम्या सिंह बताती हैं कि अध्ययन में 12 से 18 साल की आयु वर्ग की किशोरियों को शामिल किया गया।

इंडियन काउन्सिल ऑफ़ मेडिकल ऑफ़ रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार किशोरियों में होना चाहिए इतना हीमोग्लोबिन-

हीमोग्लोबिन : >12 ग्राम / डेसीलीटर ( नार्मल एनीमिया )

हीमोग्लोबिन : 11-11.9 ग्राम/डेसीलीटर ( माइल्ड एनीमिया )

हीमोग्लोबिन: 8-10.9 ग्राम/ डेसीलीटर ( मोडरेट एनीमिया )

Haemoglobin < 8 ग्राम/डेसीलीटर (सीवियर एनीमिया) होने की पुष्टि की गयी।

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