आत्महत्या बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी – मुक्तिनाथानंद
डॉक्टरों ने माना मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करना आवश्यक

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर रामकृष्ण मठ निराला नगर द्वारा गैर-सरकारी संगठन ह्यूमन यूनिटी मूवमेंट के सहयोग से युवाओं के साथ एक जागरूकता सत्र आयोजित किया गया।
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य युवाओं को आत्महत्या के बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रेरित करना और उन्हें ऐसे जीवन कौशल विकसित करने में मदद से अपने जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकारात्मक स्वस्थ जीवन यापन कराना है।
कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित करके एवं वैदिक मन्त्रोंच्चारण विवेकानन्द युवा संघ के सदस्यो द्वारा हुआ तथा गणमान्य अतिथियों का स्वागत नरेन्द्र किशोर संघ के सदस्यों द्वारा किया गया।
उद्घाटन भाषण सचिव स्वामी मुक्तिनाथानंद महाराज द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि यह दिन दुनिया भर में आत्महत्या की रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य के महत्व के बारे में जागरूकता फैला कर इसकी रोकथाम करना तथा यह दिन मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी गलतफहमियों को दूर करने के लिए होता है, ताकि लोग मदद मांगने में संकोच न करें।
स्वामी ने आत्महत्या के मामलों की रोकथाम के बारे में अपील करते हुए बताया कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सभी लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं खासकर जो संकट में हैं। इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बात करना और पेशेवर सलाहकारों से मदद लेना जरूरी है। आत्महत्या के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है। इसे स्कूलों, वर्कप्लेस और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से किया जा सकता है।
इस परिचर्चा में डॉ. देवेंद्र सिंह वार्ष्णेय, नैदानिक मनोवैज्ञानिक, डॉ. सुचिता चतुर्वेदी, सामाजिक कार्यकर्ता, डॉ. संगीता शर्मा, पूर्व सदस्य, बाल कल्याण समिति, डॉ. अंशुमाली शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति और डॉ. रश्मि सोनी, परामर्श मनोवैज्ञानिक उपस्थित थें।
इस परिचर्चा में निम्नलिखित पैनलिस्टों ने भाग लिया एवं अपने व्यक्तब्य दिये।
डॉ. सुचिता चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य हैं और पिछले 6 वर्षों से लगातार दो कार्यकालों से सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि शारीरिक गतिविधि और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देकर, मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकते है और आत्महत्या के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
यह हेल्दी डाइट, पूरी नींद और रोज एक्सरसाइज करके किया जा सकता है। डॉ. संगीता शर्मा पूर्व सदस्य बाल कल्याण समिति, राष्ट्रीय सरोगेसी और एआरटी बोर्ड की सदस्य है। वह एक सामाजिक भी कार्यकर्ता हैं। उन्होंने इस विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि आत्महत्या एक गंभीर वैश्विक समस्या है। यह एक मुद्दा इतना पेंचिदा है कि इसके पीछे कई कारक हो सकते हैं।
जैसे कि मानसिक स्वास्थ्य समस्या, तनाव, अकेलापन, सामाजिक या आर्थिक दबाव आदि। इन वजहों को पहचानने के लिए और प्रभावित व्यक्ति की मदद कैसे कर सकते हैं, इस बारे में समझने के लिए इस बारे में बात करना जरूरी है। आत्महत्या को रोकने के लिए ये समझना जरूरी है कि यह एक निराशाजनक स्थिति का नतीजा होता है, लेकिन ऐसी स्थिति से बचाव करने के लिए मदद उपलब्ध है, जिसके बारे में लोगों में जानकारी होनी चाहिए।
डॉ. अंशुमाली शर्मा बाल कल्याण समिति की पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि आत्महत्या के जोखिम वाले लोगों के लिए मदद पहुंचाना जरूरी है। आत्महत्या के कारक में सिर्फ मानसिक बीमारी का मामला नहीं, ये एक सामाजिक और प्रणालीगत संकट है।
नौकरी और आर्थिक अस्थिरता, पारिवारिक टकराव, शिक्षा और परीक्षा का दबाव, युवा पीढ़ी की संवेदनशीलता और समाज में बदनामी या असफलता से आत्महत्या जैसे गलत कदम उठा लेते है। डॉ. देवेंद्र सिंह वार्ष्णेय नैदानिक मनोवैज्ञानिक, अतिरिक्त निदेशक, डीसीवी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, लखनऊ; एमिटी विश्वविद्यालय से स्वास्थ्य मनोविज्ञान और इन्टरवेन्सन में पीएचडी है।
डा. सिंह ने कहा कि आत्महत्या को केवल मानसिक रोग का परिणाम मानना अधूरा नजरिया हैं। बहुत बार यह आर्थिक दबाव, सामाजिक अलगाव या रिलेशनशिप ब्रेकडाउन की वजह से भी होती है. ऐसे मामलों में व्यक्ति को मदद मांगने का मौका तक नहीं मिलता।
प्रो. रश्मि सोनी, शिक्षा विभागाध्यक्ष जेएनएमपीजी कॉलेज, लखनऊ विश्वविद्यालय जो पिछले 25 वर्षों से परामर्श मनोवैज्ञानिक के रूप में कार्यरत है। कोविड-19 के लिए उत्तर प्रदेश के कई जिलों में राज्य मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाता तथा उत्तर प्रदेश पुलिस की 1090 महिला हेल्पलाइन की परामर्शदाता है ने कहा कि बढ़ती इच्छाएं, कमजोर पारिवारिक रिश्ते और भावनात्मक असहायता जैसे ये वो कारक हैं जो व्यक्ति को आत्महत्या तक पहुंचा रहे हैं।
प्रो. सोनी ने बताया कि अक्सर लोग शब्दों या व्यवहार के जरिए पहले संकेत भेजते हैं, स्पेशली जब उन्हें लगता है कि कोई सुनने वाला नहीं है तब यह कदम उठाते है। वहीं श्रोताओं एवं युवाओं के प्रश्नों के उत्तर कार्यक्रम में आये हुए विशेषज्ञों ने दिया।
अन्त में धन्यवाद ज्ञापन लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष डा. नुपुर सेन ने दिया तथा इस तरह के शिक्षाप्रद व समाज में जागरूकता के लिए धन्वाद दिया।



