मध्यस्थता अभियान के तहत 13250 मामलों का निस्तारण
लंबित वादों के निस्तारण को मध्यस्थता' अभियान को बनाया गतिशील

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। न्यायालय में लंबित वादों के निस्तारण के लिए मध्यस्थता ‘राष्ट्र के लिए’ अभियान चलाया गया।
उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण नोडल अधिकारी एवं न्यायाधीश के निर्देशानुसार मध्यस्थता अभियान के तहत लंबित वादों का निपटारा किया गया। बताते चले कि देश के विशाल आकार होने के साथ जनसंख्या और समाज में लगातार बढ़ते विवादों के कारण मुकदमेबाजी में भारी वृद्धि देखी गयी।
जिससे न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ भी बढ़ा है। ऐसे में, मध्यस्थता, सुलह और मध्यस्थता जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र उपयोगी साबित माना जा रहा है। एडीआर तंत्र विवादों को सुलझाने के पारंपरिक तरीकों का बेहतर विकल्प प्रदान करने में सक्षम हैं।
मध्यस्थता अभियान को गति देने के लिए, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने मध्यस्थता एवं सुलह परियोजना समिति, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सहयोग से, भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायाधीश, भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा कार्यकारी अध्यक्ष, नालसा और अध्यक्ष, एमसीपीसी के मार्गदर्शन में विशेष मध्यस्थता अभियान राष्ट्र के लिए मध्यस्थता की संकल्पना की।
“राष्ट्र के लिए मध्यस्थता” अभियान पूरे भारत में शुरू किया गया। यह अभियान भारत के सभी तालुका न्यायालयों, जिला न्यायालयों और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को मध्यस्थता के माध्यम से निपटाने के लिए 90 दिनों का गहन अभियान था, जो 1 जुलाई से शुरू होकर 30 सितम्बर तक चलाया गया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अभियान के उद्देश्यों को साकार करने और सर्वोच्च न्यायालय की परिकल्पना के अनुसार इसकी सफलता में योगदान देने के लिए विभिन्न उपाय किए गये। उच्च न्यायालय में, मध्यस्थता के लिए उपयुक्त मामलों की पहचान डेटाबेस से की गई (मामले में निर्धारित तिथि की परवाह किए बिना) जिन्हें “विशेष मध्यस्थता अभियान के लिए रेफरल के लिए राष्ट्र के लिए मध्यस्थता” शीर्षक के अंतर्गत सूचीबद्ध किया जाना था।
इसके लिए संबंधित अनुभागों को वैवाहिक विवाद, दुर्घटना दावा, घरेलू हिंसा, चेक अनादरण, वाणिज्यिक विवाद, सेवा संबंधी मामला, आपराधिक समझौता योग्य, ऋण वसूली, विभाजन, बेदखली, भूमि अधिग्रहण और अन्य उपयुक्त मामलों जैसी श्रेणियों से मध्यस्थता के लिए उपयुक्त मामलों की पहचान करने का निर्देश दिया गया था।
वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय मध्यस्थता एवं सुलह केंद्र इलाहाबाद और इसकी लखनऊ पीठ में 1जुलाई से 30 सितम्बर तक 1978 मामले मध्यस्थता के लिए भेजे गए, जिनमें से 100 मामलों का मध्यस्थता के माध्यम से निपटारा किया गया। इसके अलावा
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के जिला न्यायालयों में इस अभियान की सफलता के लिए कई कदम उठाए। नियमित अंतराल पर ऑनलाइन वर्चुअल बैठकें आयोजित की गईं।
जिनमें जिला न्यायाधीशों,विशेष कार्य अधिकारी, सदस्य सचिव, उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, लखनऊ (‘राष्ट्र के लिए मध्यस्थता’ अभियान के नोडल अधिकारी), पारिवारिक न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीशों, वाणिज्यिक न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारियों और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन प्राधिकरणों के पीठासीन अधिकारियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भाग लिया।
जहाँ उन्हें मध्यस्थता के लिए मामलों के रेफरल को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया। जिला न्यायालयों के न्यायिक अधिकारियों को मध्यस्थता के लिए मामलों के रेफरल बढ़ाने के लिए नियमित रूप से जागरूक किया गया। इसके लिए
सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों की सेवाएँ उनके संबंधित जिलों में मध्यस्थ के रूप में ली गईं। जिला न्यायालयों ने अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए मध्यस्थता के लिए बड़ी संख्या में भेजे गए मामलों से निपटने के लिए अतिरिक्त अधिवक्ता मध्यस्थों की नियुक्ति की गयी।
जिसमें 1जुलाई से 30 सितम्बर तक जिला न्यायालयों में 115309 मामले मध्यस्थता के लिए भेजे गए, जिनमें से 13250 मामलों का मध्यस्थता के माध्यम से निपटारा किया गया।



