उत्तर प्रदेशजीवनशैलीबड़ी खबर

पीजीआई में वायरोलॉजी डायग्नोस्टिक पर कार्यशाला सम्पन्न 

 10 राज्यों के 20 प्रतिभागियों को किया प्रशिक्षित 

 

लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। अत्याधुनिक वायरोलॉजी डायग्नोस्टिक के बारे में प्रशिक्षण दिया गया। शुक्रवार को संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के वायरोलॉजी रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी, माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा 24 से 28 फरवरी तक चली “डायग्नोस्टिक वायरोलॉजी मौलिक प्रयोगशाला तकनीक और अभ्यास” पर हैंड्स-ऑन राष्ट्रीय कार्यशाला का समापन किया गया। जिसमें नैदानिक ​​​​विशेषज्ञता बढ़ाने के उद्देश्य से कार्यशाला ने 10 राज्यों के 20 प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया। जिनमें वायरोलॉजिस्ट और अनुसंधानकर्ता भी शामिल रहे। वैज्ञानिक कोविड -19, इन्फ्लुएंजा और वायरल हेमेरैजिक बुखार जैसे वायरल प्रकोप का पता लगाने में लगे हुए हैं। प्रतिभागी एम्स कल्याणी, एम्स देवघर, एम्स नागपुर, एनईआईजीआरआईएचएमएस शिलांग और जेएनएमसीएच अलीगढ़ से थे। पहला दिन कार्यशाला की शुरुआत “क्लिनिकल वायरोलॉजी” पर एक सीएमई के साथ हुई, जहां प्रोफेसर अमिता जैन जैसे विशेषज्ञों ने वीएचएफ और विभिन्न नैदानिक ​​तकनीकों के प्रभाव पर चर्चा की। प्रोफेसर ज्योत्सना अग्रवाल, कार्यकारी रजिस्ट्रार एवं प्रमुख, माइक्रोबायोलॉजी विभाग,आरएमएल लखनऊ ने मेटान्यूमोवायरस, मंकीपॉक्स और डिजीज एक्स जैसे उभरते वायरल खतरों के लिए तैयारियों के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो. मोहन गुर्जर सहित एसजीपीजीआई के विशेषज्ञों ने आईसीयू रोगियों में साइटोमेगालोवायरस संक्रमण पर चर्चा की, जबकि डॉ. प्रेरणा कपूर ने वायरल डायग्नोस्टिक्स और टीकाकरण अपडेट के लिए समग्र दृष्टिकोण पर जोर दिया। प्रो. विमल के पालीवाल ने उत्तर प्रदेश में तीव्र वायरल एन्सेफलाइटिस के प्रकोप के बारे में जानकारी प्रदान की। सत्र में केजीएमयू, आरएमएल, एरा मेडिकल कॉलेज, मेदांता अस्पताल और अपोलो मेडिक्स के प्रमुख माइक्रोबायोलॉजिस्ट और चिकित्सकों ने भाग लिया। दोपहर के सत्र में डॉ. रश्मि, तनीषा, हेमलता और बुद्धज्योति के नेतृत्व में वायरस अलगाव के लिए मल नमूना प्रसंस्करण और सेल टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित किया गया। जिसमें प्रतिभागियों को मौलिक वायरोलॉजी तकनीकों में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया। सभी सत्रो को प्रोफेसर रुंगमेई एस के मराक, डॉ. तसनीम सिद्दीकी व डॉ. अतुल गर्ग की देखरेख में आयोजित किया गया। दूसरे दिन प्रतिभागी व्यवहार्यता और वृद्धि के लिए सेल लाइनों की दैनिक निगरानी में लगे हुए थे। उन्हें डॉ. निकी श्रीवास्तव द्वारा कोशिका विभाजन, गिनती, मार्ग, क्रायोप्रिजर्वेशन और मीडिया तैयारी में प्रशिक्षित किया गया था। प्रतिभागी इन तरीकों को सीखकर नमूनों से प्रयोगशाला में वायरस को अलग करने और फैलाने की विधि का पता लगाते हैं। इसके अलावा उन्होंने डॉ. धर्मवीर सिंह की देखरेख में जीनोमिक स्तर पर वायरस का पता लगाने के लिए न्यूक्लिक एसिड निष्कर्षण, पारंपरिक पीसीआर और जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस पर भी काम किया।तीसरा और चौथा दिन बायोफायर और क्यूआईएस्टैट-डीएक्स मशीनों का उपयोग करके सेल संवेदनशीलता परख, मात्रात्मक पीसीआर और सिंड्रोमिक डायग्नोस्टिक दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रतिभागियों ने सेल कल्चर मीडिया निस्पंदन, तरल नाइट्रोजन से सेल पुनरुद्धार और प्लाक परीक्षण का प्रदर्शन किया, ये विधि एंटीवायरल के प्रभाव का अध्ययन करने और टीका विकास के लिए कदम शुरू करने में मदद करती है। डॉ. अतुल गर्ग के समस्या निवारण मार्गदर्शन के साथ प्रतिभागियों ने रियल-टाइम पीसीआर में व्यावहारिक अनुभव भी प्राप्त किया। प्रतिभागियों ने स्पिल प्रबंधन और जैव सुरक्षा उपायों को भी सीखा जो स्वयं और समुदाय की सुरक्षा के लिए बुनियादी निवारक उपाय हैं। पांचवें दिन मात्रात्मक पीसीआर और सिंड्रोमिक डायग्नोस्टिक्स पर गहन सत्रों के साथ उन्नत प्रशिक्षण जारी रहा। मेदांता हॉस्पिटल की डॉ. भावना जैन ने बायोफायर फिल्मरे पैनल डायग्नोसिस पर व्याख्यान दिया। प्रतिभागियों के फीडबैक और उन्हे प्रमाणपत्र वितरण के साथ कार्यशाला संपन्न की गयी।

 जानें कार्यशाला का महत्व..

यह कार्यशाला उभरती वायरल चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक अत्याधुनिक नैदानिक ​​क्षमताओं के साथ वायरोलॉजिस्ट प्रदान करने में सहायक रही है। व्यावहारिक दृष्टिकोण ने नमूना प्रबंधन, सेल संस्कृति विधियों, आणविक निदान और स्वचालित सिंड्रोमिक परीक्षण सहित विभिन्न तकनीकों में अमूल्य अनुभव प्रदान किया है। वायरोलॉजी में तीव्र प्रगति को देखते हुए, वायरल प्रकोप के खिलाफ राष्ट्रीय तत्परता बढ़ाने के लिए ये प्रशिक्षण कार्यक्रम आवश्यक हैं। संजय गांधी पीजीआई चल रही शिक्षा और कौशल विकास पहलों के माध्यम से वायरोलॉजी अनुसंधान और निदान में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। माइक्रोबायोलॉजी विभाग और वायरोलॉजिस्ट ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन करने और इन राष्ट्रीय प्रतिभागियों को उनके संबंधित केंद्रों पर वायरोलॉजी प्रयोगशालाएं स्थापित करने में सहायता करने के लिए तत्पर हैं, जिसका उद्देश्य उनकी विशेषज्ञता को बढ़ाना और उन्हें और उनकी टीमों को इन कौशलों को और अधिक प्रसारित करने में सक्षम बनाना है।जिसमें संस्थान ने अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया है। जिसमें यदि कोई प्रतिभागी अपने केंद्र में कुछ वायरोलॉजी सुविधा स्थापित करना चाहता है, तो एसजीपीजीआई वायरोलॉजी टीम उनके केंद्र का दौरा करेगी और तकनीकी सहायता प्रदान करेगी। इस प्रकार की कार्यशाला प्रतिवर्ष आयोजित की जायेगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button