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4.18 करोड़ रूपये शोध को एसजीपीजीआई को मिला अनुदान 

 जन्मजात हृदय रोग अनुसंधान के लिए मिला अनुदान

 

 लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। बच्चों में जन्मजात होने वाले हृदय रोग के बारे में शोध करने के लिए आर्थिक धनराशि जारी की गयी है। गुरुवार को जन्मजात हृदय रोग अनुसंधान के लिए आईसीएमआर द्वारा एसजीपीजीआई को 4.18 करोड़ रुपए का अनुदान प्रदान किया गया है। डॉक्टरों का मानना है कि इसमें

अलग थलग (आइसोलेटेड) जन्मजात हृदय दोष (आईसीएचडी) नवजात शिशुओं में पाए जाने वाले हृदय विकृतियों का सबसे प्रमुख प्रकार हैं। आधुनिक नैदानिक उपकरणों से प्रारंभिक पहचान और संभावित चिकित्सकीय हस्तक्षेप अथवा गर्भावस्था समाप्ति संभव हो जाती है। फिर भी इन दोषों की आनुवंशिक और रोग संबंधी नींव अभी भी पूरी तरह से समझी नहीं गई है।

एक नया शोध प्रयास इस ज्ञान के अंतर को भरने के लिए आईसीएचडी के आणविक और आनुवंशिक आधार की जांच करेगा। इस अध्ययन से प्राप्त जानकारी बेहतर रोकथाम रणनीतियों और उन्नत उपचारों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। जिसे

आईसीएचडी अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण प्रगति के रूप में डॉ चंद्र प्रकाश चतुर्वेदी एडीशनल प्रोफेसर, स्टेम सेल अनुसंधान केंद्र, रक्त विज्ञान विभाग, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान और उनकी सहयोगी टीम ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से प्रतिष्ठित चार करोड़ अठारह लाख रुपये का बाह्य अनुदान प्राप्त किया है।

यह अनुदान अलग थलग जन्मजात हृदय दोष की आनुवंशिक और आणविक जड़ों को उजागर करने के उद्देश्य से किए जाने वाले उन्नत शोध का समर्थन करेगा। इससे

यह महत्वाकांक्षी परियोजना विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों को एक साथ लाती है। मातृ और प्रजनन स्वास्थ्य विभाग की प्रोफेसर मन्दाकिनी प्रधान और डॉ नीता सिंह सह प्रधान अन्वेषक के रूप में कार्य करेंगी और प्रभावित भ्रूणों की नैदानिक जांच, स्क्रीनिंग तथा अम्नियोटिक द्रव के नमूने एकत्र करने की देखरेख करेंगी।

डॉ दिनेश कुमार, अतिरिक्त प्रोफेसर जैव चिकित्सीय अनुसंधान केंद्र लखनऊ, चयापचय विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करेंगे ताकि आईसीएचडी से जुड़े जैव रासायनिक परिवर्तनों को समझा जा सके। डॉ मनाली जैन, एक हृदय संबंधी अनुसंधान विशेषज्ञ जिन्होंने प्रस्ताव की रूपरेखा बनाने में योगदान दिया, मुख्य वैज्ञानिक के रूप में कार्य करेंगी और शोध छात्रों के साथ मिलकर इस परियोजना को आगे बढ़ाएँगी।

यह अध्ययन अत्याधुनिक बहु ओमिक्स विधियों जैसे सम्पूर्ण जीनोम अनुक्रमण, ट्रांसक्रिप्टोमिक्स, प्रोटीओमिक्स और चयापचय विज्ञान का उपयोग करके आईसीएचडी की उत्पत्ति की जांच करेगा और बेहतर नैदानिक तथा चिकित्सीय उपाय विकसित करेगा। डॉ चतुर्वेदी ने कहा कि यह परियोजना परिवारों को आशा देने और नन्हीं जिंदगियों को बचाने की दिशा में एक कदम है। अलग थलग जन्मजात हृदय दोष से संबंधित आणविक पैटर्न को पहचान कर, शोधकर्ता जैविक तंत्र को स्पष्ट करने, महत्वपूर्ण जीन और प्रोटीन सूचक की पहचान करने तथा प्रारंभिक निदान और पुनर्जनन चिकित्सा के लिए नए लक्ष्य खोजने की उम्मीद रखते हैं।

डॉक्टरों द्वारा निर्धारित लक्ष्य प्रारंभिक पहचान के लिए सूचक ढूंढना और ऐसे उपचार विकसित करना जो इन स्थितियों से पीड़ित नवजात शिशुओं की देखभाल को बदल सकें और स्वस्थ गर्भधारण तथा हृदय दोष वाले शिशुओं की बेहतर देखभाल की दिशा में नई आशा प्रदान कर सकें।

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