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डॉक्टरी पेशा सेवा, व्यापार नहीं – डॉ. ठुकराल 

1947 में भारत पाकिस्तान के बटवारे में भारत आकर जीवन यात्रा की शुरुआत, सीखी हिंदी

 

कम खाना,कम सोना,ईमानदारी के साथ कार्य करना यही, स्वस्थ होने का राज

मरीजों से मैंने फीस नहीं ली, दवाओं कीमत लेकर चलाई क्लीनिक,बढ़ती गयी भीड़ 

साक्षात्कार

 लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। मरीजों से व्यवहार परिवार के जैसा करना चाहिए। फिजूल खर्च नहीं लेना चाहिए। यहाँ तक कि मरीजों से फीस नहीं ली सिर्फ दवाओं की जो कीमत होती है वही लेकर संतुष्टि के साथ उपचार प्रदान किया। आज भी क्लीनिक पर मरीजों का ताँता लगा रहता है। यह जानकारी 1947 में भारत पाकिस्तान बटवारे के दौरान साबोवाल जिला सरगोधा से भारत के सहारनपुर देवबन्द आये 92 वर्षीय डॉ. मैय्या दास ठुकराल साक्षात्कार में दी।

लखनऊ राजधानी के राजाजी पुरम स्थित छोटे भाई डॉ. केके ठुकराल के आवास पर भारत प्रकाश न्यूज़ से हुए साक्षात्कार में बताया कि जब भारत पाकिस्तान बटवारे से पहले कक्षा आठ तक शिक्षा अपने गांव साबोवाल में ली जो भारत पाकिस्तान के बटवारे के बाद अब पाकिस्तान में है। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी, जीके की पढ़ाई की वहां पर हिंदी नहीं पढ़ाई जाती थी। जब सहारनपुर आया और यहाँ कक्षा आठ के बाद हिंदी विषय पढ़ने को मिला और भारत तिब्बया यूनानी कॉलेज में बीआईएमएस की डिग्री के लिए दाखिला लिया, कुछ ऐसी घटना घटी जिससे लखनऊ के तकमिल उत्तिब यूनानी कॉलेज में एडमिशन लेना हुआ और अन्य छात्र भी हमारे साथ कॉलेज में दाखिला ले लिया। डॉक्टरी पढ़ाई के दौरान अपना खर्च निकालने के लिए ट्यूशन का सहारा लिया और आठ रुपए महीना पर एक लड़की को पढ़ाना शुरू किया जो अच्छे घर से थी, जिससे हमारा खर्च चलने लगा। डॉ. ठुकराल ने बताया कि इतना पैसा नहीं होता था कि बाहर का खाना खा सके अपने हाथों से तीन वर्षो तक खाना पकाकर खाया। डॉक्टरी डिग्री मिलने के बाद सहारनपुर देवबन्द में अपना क्लीनिक खोला और सेवा समर्पण भाव से क्लीनिक पर कार्य करना शुरू किया और आज ईश्वर ने सब कुछ दे दिया है। मेरा पूरा परिवार हेल्थ क्षेत्र में कार्य कर रहा है।

डॉ. ठुकराल ने कहा कि डॉक्टरी पेशा मरीजों के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए, डॉक्टरी पेशा ईमानदारी का कार्य है व्यापार नहीं है। मरीजों की सेवा करने से आज ईश्वर ने सबकुछ दिया है कोई कमी नहीं छोड़ी है। वहीं डॉ. ठुकराल से जब 92 वर्ष की उम्र में स्वस्थ होने का राज जानने की बात की तो उन्होंने बताया कि बहुत कम खाना, कम सोना, तपस्या की भांति क्लीनिक पर कार्य करना यही मेरे स्वस्थ होने का राज है।

वहीं बीते दिनों 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके तकमिल उत्तिब यूनानी अस्पताल में डॉ. मनीराम सिंह द्वारा डॉ मैय्या दास ठुकराल एवं केके ठुकराल पूर्व निदेशक आयुर्वेदिक, यूनानी निदेशालय लखनऊ उप्र को बतौर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। जिसमें डॉ ठुकराल कार्यक्रम में शामिल होकर अपने जीवन के अनुभव को साझा किया। जिसमें छात्रों डॉक्टरों ने उनके अनुभवों को अनुश्रवण किया। वहीं प्रधानाचार्य प्रो अब्दुल कवी द्वारा सम्मानित भी किया गया।

इसके अलावा मेडिकल रिपोर्टर ने अन्य क्षेत्र के अनुभवों को जानने के लिए बातचीत करते हुए पूछा कि इस जीवन की यात्रा में हिंदी साहित्य पर आधारित कोई किताब लिखी है या नहीं, तो उन्होंने बताया कि कई शायरी लिखी हैं जब कुछ ऐसी घटना होती है तो वह शायरी अंदाज में जुबां पर आ ही जाती है। उन्होंने बताया कि एक बार किसी अंजान व्यक्ति ने गाली दी तो उस घटना पर मेरी जुबान से शायरी का रूप ले लिया वह यह था शेर

” बदजुबां है मां की गाली दे रहा है, जिसकी माँ को मैंने अपनी माँ कहा था ” दूसरा शेर पेश करते हुए कहा कि “हुश्न की एक निगाह गलत अंदाज इश्क मरता नहीं तो क्या करता, तुमने गैरों से दोस्ती कर ली मैं भला किस तरह वफ़ा करता। उन्होंने बताया कि गजल भी लिखी है,जब मौका मिलता है कुछ लिखता पढता रहता हूँ। इसी क्रम में उन्होंने तकमिल उत्तिब यूनानी कॉलेज का मतलब समझाते हुए कहा कि इसका शाब्दिक अर्थ है, यूनानी विधा में मास्टर बनना।

डॉ. ठुकराल ने फ़ारसी भाषा में शायरी अंदाज में उल्लेख का जिक्र करते हुए कहा कि यूनानी में निमोनिया को जातुल जम्ब के लक्षणों के बारे में कहा गया है कि ” पंज बाशद निशाने जातुल जम्ब गोयेमत गर गोष्मेंदारी, तप,सुर्फा दर्ददर पहलू नब्ज़ तंगस्तमिनसारी”यानि इस बीमारी के पांच लक्षणों में कफ बनना, सांस आरा मशीन की तरह अवाज करना, सांसों में घुटन,शरीर का तापमान बढ़ना, पहलू में दर्द होना यानि इन्हीं पांच लक्षणों को जातुल जम्ब (निमोनिया)के लक्षण बताये जाते है।

उन्होंने कहा कि बिना चश्मे के 92 साल की उम्र में क्लीनिक पर सर्जरी भी करते हैं। क्लीनिक पर आने वाले हर तरह के मरीजों का इलाज प्रदान करते हैं। अभी तक कोई भी मरीज असंतुष्ट होकर नहीं गया है।अभी भी पूरी तन्मयता के साथ कार्य करता हूँ। मरीज को अपने परिवार का सदस्य समझकर उपचार प्रदान कर रहें हैं।

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