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 गलत निर्णय देना समूचे समाज के लिए घातक -आनंदीबेन पटेल

111 नवनियुक्त प्रशिक्षु न्यायाधीश राज्यपाल से की मुलाक़ात

 

 लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। राजधानी में 111 प्रशिक्षु न्यायाधीशों ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात की। शुक्रवार को राजभवन में उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा 2022 बैच के 111 नवनियुक्त प्रशिक्षुओं, सिविल न्यायाधीश (अवर खंड) एवं न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के अधिकारियों ने राज्यपाल से मुलाकात की।

वहीं राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपने उद्बोधन में सभी प्रशिक्षु अधिकारियों एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्रतिनिधियों का राजभवन में स्वागत करते हुए कहा कि न्यायिक अधिकारियों को सदैव अपने कर्तव्य के प्रति सजग रहना चाहिए। दबाव में आकर या अपूर्ण,गलत सूचना के आधार पर दिया गया निर्णय केवल व्यक्ति विशेष ही नहीं, बल्कि समूचे समाज के लिए घातक हो सकता है।

उन्होंने प्रशिक्षु न्यायाधीशों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वे निष्ठा, निष्पक्षता और संवेदनशीलता के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें तथा निरंतर अध्ययन एवं आत्मचिंतन के माध्यम से अपनी न्यायिक दृष्टि को और अधिक सुदृढ़ बनाएं।

राज्यपाल ने अपने कारागार भ्रमण के अनुभव को साझा करते हुए न्यायिक अधिकारियों का ध्यान समाज के उस वर्ग की ओर आकृष्ट किया, जो अक्सर अदृश्य रह जाता है। उन्होंने बताया कि कारागारों में ऐसी अनेक महिलाएं हैं, जो आर्थिक दंड चुका पाने में असमर्थ होने के कारण, अपनी सजा पूरी होने के बावजूद भी कारागारों में बंद हैं। ऐसी स्थिति में उनके साथ रहने वाले 1 से 9 वर्ष की आयु के बच्चे भी कारागार में रहकर सजा भोगने को विवश होते हैं। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि न्यायिक दृष्टि से भी गहन विचारणीय है। राजभवन के प्रयासों से, समाज के सहयोग द्वारा ऐसी महिलाओं का आर्थिक दंड चुकाकर उन्हें कारागार से मुक्त कराने का कार्य किया गया है।

उन्होंने उपस्थित नवनियुक्त न्यायिक अधिकारियों से कहा कि वे जब भी किसी प्रकरण की सुनवाई करें, तो उस पर गहराई से विचार करें तथा न्याय करते समय मानवीय संवेदना और सामाजिक यथार्थ को ध्यान में रखें। न्यायिक प्रक्रिया में ऐसे नवाचार किए जाने चाहिए, जिससे इस प्रकार की सामाजिक विसंगतियों की पुनरावृत्ति न हो।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जो महिलाएं विदेशों में कार्य या शिक्षा के लिए जाती हैं और वहां अनेक समस्याओं में फंस जाती हैं, उनके लिए भी पूर्व-संरचना के अंतर्गत समाधान की दिशा में कार्य होना चाहिए। यदि संकट उत्पन्न होने से पहले ही संभावित उपायों पर विचार कर लिया जाए, तो समाज को व्यापक स्तर पर लाभ हो सकता है।

राज्यपाल ने कहा कि जिस प्रकार डॉक्टर व्यक्ति के शरीर का इलाज कर रोगों का निदान करता है, उसी प्रकार एक न्यायाधीश समाज की बुराइयों का उपचार कर उसे स्वस्थ बनाता है। न्यायिक अधिकारियों को केवल न्यायालय तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि वे विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर जनसामान्य को विधिक जानकारी दें, ताकि वे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सजग हों। आम जनता को कानूनों की जानकारी के अभाव में अनेक बार अपराधों का शिकार होना पड़ता है। अतः न्यायिक अधिकारियों का यह नैतिक दायित्व है कि वे समाज के संरक्षक बनें और सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में सक्रिय भूमिका निभाएं।

उन्होंने यह भी कहा कि समाज में विवादों के समाधान के लिए पूर्व-न्यायिक संस्थाओं का सशक्तिकरण किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी संस्थाएं बनाई जानी चाहिए, जो न्यायालय में जाने से पहले ही पारस्परिक विवादों का समाधान कर सकें। राज्यपाल ने गुजरात राज्य के अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि किस प्रकार उनकी प्रेरणा से गुजरात में नारी अदालतों की स्थापना की गई, जो आज भी प्रत्येक जिले में प्रभावी रूप से कार्यरत हैं। नारी अदालतें अनुभवी, व्यवहारिक दृष्टिकोण रखने वाली महिलाओं द्वारा संचालित की जाती हैं, जो ग्राम्य स्तर पर महिलाओं की समस्याओं का संवेदनशीलता के साथ समाधान करती हैं।

इसी प्रकार की संस्थाओं की परिकल्पना की जानी चाहिए, जिससे पीड़ित महिलाओं को त्वरित एवं सुलभ न्याय मिल सके। उन्होंने बताया कि गुजरात में क्रियाशील महिला आयोग एवं महिला सुरक्षा समिति अत्यंत प्रभावी रूप से कार्य कर रहा है और महिलाओं से जुड़े अनेक मामलों का समाधान महिला न्यायालय के स्तर पर ही कर देता है, जिससे न्यायालयों पर बोझ कम होता है।

उन्होंने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा कि दहेज, बाल विवाह, तलाक, संपत्ति विवाद और बदले की भावना से किए गए अपराध तथा किसानों की समस्याओं जैसी सामाजिक बुराइयों पर गंभीरता से चिंतन करें और इनके निराकरण हेतु ठोस कदम उठाएं। उन्होंने यह भी कहा कि हर युवक को यह शपथ लेनी चाहिए कि वह न तो दहेज लेगा और न ही देगा। समाज को स्वच्छ और समतामूलक बनाने में न्यायिक अधिकारियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अनावश्यक मुकदमों को वर्षों तक लंबित रखने के स्थान पर त्वरित न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।

राज्यपाल जी ने 2022 बैच में 55 प्रतिशत महिला न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति पर प्रसन्नता व्यक्त की और इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सराहनीय पहल बताया। उन्होंने कहा कि महिला अधिकारियों को विशेष रूप से महिलाओं से संबंधित मामलों पर संवेदनशीलता के साथ त्वरित निर्णय लेने चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब वह जिलों का भ्रमण करती हैं, तो उन्हें बार-बार यह देखने को मिलता है कि अधिकांश महिलाएं दहेज प्रथा, बाल विवाह, राजस्व विवाद, और बदले की भावना से किए गए अपराधों के कारण कारागारों में बंद हैं। यह आवश्यक है कि समाज के प्रत्येक नागरिक, विशेषकर युवा वर्ग, इन कुरीतियों के विरुद्ध दृढ़ संकल्प लें।

राज्यपाल ने केंद्र सरकार की ‘स्वामित्व योजना‘ का उल्लेख करते हुए कहा कि इस योजना के लागू होने से भूमि से संबंधित अनेक विवादों का समाधान हुआ है। डिजिटल रूप से संपत्ति के अभिलेख तैयार होने से न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में स्वामित्व की स्पष्टता आई है, बल्कि अनावश्यक मुकदमेबाजी में भी कमी आई है। इस योजना ने न सिर्फ न्यायालयों पर भार कम किया है, बल्कि ग्राम स्तर पर विवादों के निवारण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

राज्यपाल आंगनवाड़ी केंद्रों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील और प्रतिबद्ध रहती हैं। उनका स्पष्ट मत है कि आंगनवाड़ी में अध्ययनरत बच्चे ही राष्ट्र का भविष्य हैं, इसलिए उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य की देखभाल सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रत्येक जिला भ्रमण के दौरान राज्यपाल आंगनवाड़ी केंद्रों में जाकर बच्चों को शैक्षिक पुस्तकों व अन्य उपयोगी सामग्री का वितरण करती हैं, जिससे उनमें प्रारंभिक अवस्था से ही ज्ञान के प्रति रुचि विकसित हो। इस मौके पर न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक दिवेश चन्द्र सामंत ने राज्यपाल को पुस्तकें भेंट स्वरूप प्रदान की।

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