उत्तर प्रदेशधर्म-अध्यात्म

भगवान शिव के अपमान पर माता सती ने दी प्राणों की आहुति -अप्रमेय प्रपन्नाचार्य

 श्रीमद् भागवत कथा सत्प्रसंग में तीसरे दिन माता सती का वर्णन

 

रामनगर/बाराबंकी।लखनऊ, भारत प्रकाश न्यूज़। श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन राजा दक्ष पुत्री सती की कथा सुनाई गयी।

शनिवार को धमेड़ी मोहल्ला स्थित लक्ष्मी नारायण शुक्ला के आवास पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा प्रसंग के दौरान कथा वाचक अप्रमेय प्रपन्नाचार्य महाराज ने बताया कि भगवान शिव के मना करने के बाद भी बिना निमंत्रण के सती अपने पिता के यहां यज्ञ में गई जहां पर भगवान शिव का घोर अपमान हुआ।

जिसे वे सहन न कर सकी और माता सती ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन्होंने कहा कि एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया गया दक्ष द्वारा भगवान शिव को इस पवित्र अनुष्ठान में आमंत्रित न किया जाना शिव के लिए गंभीर अपमान का द्योतक था।

सती, जो शिव के प्रति अपने मन में अथाह श्रद्धा रखती थीं, इस अपमान को सहन न कर सकीं तथा उन्होंने आत्मदाह कर लिया। दुःख और क्रोध से अभिभूत होकर भगवान शिव ने सती की मृत देह को अपनी भुजाओं पर धारण कर लिया तथा विनाशकारी नृत्य ‘तांडव‘ आरम्भ कर दिया।‌

तांडव की यह मुद्रा समस्त ब्रह्माण्ड के विनाश का कारण बन सकती थी, अतः भगवान विष्णु ने हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया। प्रभु विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के 51 खंड कर दिए तथा उनको भारतवर्ष, जो हिन्द महासागर से हिमालय के मध्य विस्तृत है, के विभिन्न भागों में प्रसारित कर दिया।

ये 51 खण्ड जिन स्थानों पर गिरे, उन 51 स्थानों को शक्तिपीठों के नाम से आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में जाना जाता है। महाराज ने बताया कि उत्तर में हिंगलाज माता (बलोचिस्तान) से दक्षिण में शंकरी देवी (श्रीलंका) तक शक्तिपीठों का विस्तार है।

यह 51 शक्तिपीठ स्वयं में प्रेरणादायिनी तथा रहस्यमयी हैं। जहाँ एक ओर माता सती की जिह्वा से प्रकट हुई ज्वाला शक्तिपीठ में निरंतर एक अज्ञात स्रोत वाली ज्वाला प्रज्ज्वलित रहती है, वहीं दूसरी ओर कामाख्या देवी मानव को जन्म देने वाले गर्भ के मूर्त रूप में विराजमान हैं।

क्या कारण था जिसने देवी सती को आत्मदाह जैसा भयानक निर्णय लेने को विवश कर दिया। प्रभु शिव, जो स्वयं आदियोगी हैं, जो काम तथा मोह के नाशक माने जाते हैं, कौनसी शक्ति थी। जिसने महादेव के मन में ऐसा मोह उत्पन्न कर दिया की उन्होंने तांडव नृत्य जैसा विभीषक निर्णय ले लिया।

प्रभु विष्णु के सुदर्शन चक्र द्वारा देवी सती की देह को छिन्न-भिन्न करने का क्या सांकेतिक अर्थ है। देवी सती के शरीर के खण्डों से पुनः शक्तिपीठों की उत्पत्ति किस ओर इंगित करती है।

तत्पश्चात आचार्य ने विदुर पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का रसास्वादन कराते हुए उन्होंने बताया कि प्रेम के वशीभूत होकर भगवान श्री कृष्ण ने विदुर के यहां केले न खा करके केलों के छिलके से अपनी क्षुधा को शांत किया था। इसी क्रम में उन्होंने कपिल भगवान की भी कथा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर आयोजक लक्ष्मी नारायण शुक्ला आचार्य शिवानंद महाराज अयोध्याधाम अनिल अवस्थी मधुबन मिश्रा आशीष पांडे, बृजेश शुक्ला, दुर्गेश शुक्ला गोपाल महाराज,उमेश पांडे, शुभम जायसवाल, लवकेश शुक्ला, शिवम शुक्ला आदि मौजूद रहे।

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