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श्रीमद्भागवत कथा श्रवण से राजा परीक्षित को मिला मोक्ष : प्रपन्नाचार्य जी महाराज

कथा के पहले दिन श्रोताओं ने किया रसपान

 

रामनगर,बाराबंकी। लखनऊ,भारत प्रकाश न्यूज़। श्रीमद् भागवत कथा श्रवणपान से नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते हैं।

श्रीमद् भागवत कथा श्रवण मात्र से मानव सांसारिक बंधनों से विरक्त होकर परम पद को प्राप्त कर लेता है। श्रीमद् भागवत कथा सुनने से ही राजा परीक्षित को मोक्ष मिला।

गुरुवार को यह बातें रामनगर के मोहल्ला धमेड़ी में लक्ष्मी नारायण शुक्ला के आवास पर श्रीमद् भागवत कथा प्रवचन के दौरान पहले दिन प्रयागराज से आए कथा वाचक वैष्णवाचार्य स्वामी अप्रमेय प्रपन्नाचार्य महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि

एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए वन में गये और वन्य पशुओं के पीछे दौड़ने के कारण वे प्यास से व्याकुल हो गये तथा जलाशय की खोज में इधर उधर घूमते घूमते वे श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुँच गये। वहाँ पर शमीक ऋषि नेत्र बंद किये हुये तथा शान्तभाव से एकासन पर बैठे हुये ब्रह्मध्यान में लीन थे।

राजा परीक्षित ने उनसे जल माँगा किन्तु ध्यानमग्न होने के कारण शमीक ऋषि ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। सिर पर स्वर्ण मुकुट पर निवास करते हुये कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित को प्रतीत हुआ कि यह ऋषि ध्यानस्थ होने का ढोंग कर के मेरा अपमान कर रहा है। उन्हें ऋषि पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने के उद्देश्य से पास ही पड़े हुये एक मृत सर्प को अपने धनुष की नोंक से उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया और अपने नगर वापस आ गये।

शमीक ऋषि तो ध्यान में लीन थे उन्हें ज्ञात ही नहीं हो पाया कि उनके साथ राजा ने क्या किया है किन्तु उनके पुत्र ऋंगी ऋषि को जब इस बात का पता चला तो उन्हें राजा परीक्षित पर बहुत क्रोध आया। ऋंगी ऋषि ने सोचा कि यदि यह राजा जीवित रहेगा तो इसी प्रकार ब्राह्मणों का अपमान करता रहेगा।

इस प्रकार विचार करके उस ऋषिकुमार ने कमण्डल से अपनी अंजुली में जल ले कर तथा उसे मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके राजा परीक्षित को यह श्राप दे दिया कि जा तुझे आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा।

कुछ समय बाद शमीक ऋषि के समाधि टूटने पर उनके पुत्र ऋंगी ऋषि ने उन्हें राजा परीक्षित के कुकृत्य और अपने श्राप के विषय में बताया। श्राप के बारे में सुन कर शमीक ऋषि को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने कहा “अरे मूर्ख! तूने घोर पाप कर डाला। जरा सी गलती के लिये तूने उस भगवत्भक्त राजा को घोर श्राप दे डाला।

मेरे गले में मृत सर्प डालने के इस कृत्य को राजा ने जान बूझ कर नहीं किया है, उस समय वह कलियुग के प्रभाव में था। उसके राज्य में प्रजा सुखी है और हम लोग निर्भीकतापूर्वक जप, तप, यज्ञादि करते रहते हैं। अब राजा के न रहने पर प्रजा में विद्रोह, वर्णसंकरतादि फैल जायेगी और अधर्म का साम्राज्य हो जायेगा।

यह राजा श्राप देने योग्य नहीं था पर तूने उसे श्राप दे कर घोर अपराध किया है। कहीं ऐसा न हो कि वह राजा स्वयं तुझे श्राप दे दे, किन्तु मैं जानता हूँ कि वे परम ज्ञानी है और ऐसा कदापि नहीं करेंगे।

आचार्य ने कहा कि जब राजा को यह बात मालूम हुई तो उन्हें बहुत पश्चात हुआ और उन्होंने श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण किया अंतत उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। बता दें की कथा आरम्भ होने से पहले

बाजे गाजे के साथ निकाली गई कलश यात्रा निकाली गयी। जिसमें श्रीमद् भागवत कथा के तत्वाधान में कथा वाचक वैष्णवाचार्य स्वामी अप्रमेय प्रपन्नाचार्य महाराज के नेतृत्व में सरयू घाट से कलश यात्रा बाजे गाजे के साथ निकाली गई। जो कस्बे में भ्रमण करते हुए अपने गंतव्य स्थल पर जाकर के समाप्त की गई।

इस अवसर पर आयोजक लक्ष्मी नारायण शुक्ला स्वामी शिवानंद महाराज,अनिल अवस्थी,मधुबन मिश्रा,आशीष पांडे,बृजेश शुक्ला,दुर्गेश शुक्ला, गोपाल महाराज,उमेश पांडे, शुभम जयसवाल,लवकेश शुक्ला, शिवम शुक्ला आदि मौजूद रहे।

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