होली उल्लास व उमंगो का त्यौहार – मुक्तिनाथानन्द
राम कृष्ण मठ में मना होली रंगोंत्सव

लखनऊ, भारत प्रकाश न्यूज़। राजधानी स्थित राम कृष्ण मठ में हर्ष उल्लास के साथ होली रंगोंत्सव मनाया गया। शुक्रवार को चैतन्य महाप्रभु की जयंती के शुभ अवसर पर रामकृष्ण मठ में होलिकोत्सव भव्य रूप से शुरूआत प्रातः 5 बजे मंगलारति के बाद प्रातः 6ः50 बजे से मदन मोहनाष्टकम की विशेष स्तुति और श्रीमद्भगवद्गीता में भक्ति योग का पाठ स्वामी इष्टकृपानन्द के नेतृत्व में किया गया। वहीं स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज द्वारा प्रवचन देते हुए कहा कि इस दिन मुख्य मंदिर में चैतन्य महाप्रभु की तस्वीर रखी जाती है और संन्यासी, ब्रह्मचारी और भक्तगण श्रीकृष्ण और चैतन्य महाप्रभु पर भक्ति गीत गाते हैं। बाद में वे नाचते-गाते मठ परिसर में घूमते हैं। मुख्य मंदिर में श्रीरामकृष्ण की शाम की आरती के बाद, चैतन्य महाप्रभु की पूजा की जाती है। फिर एक वरिष्ठ संन्यासी महाप्रभु के जीवन और शिक्षाओं पर एक व्याख्यान देते हैं। होलिका दहन और होली, दोनों ही रामकृष्ण संघ में मनाए जाते हैं क्योंकि इस परंपरा का सम्मान और उत्सव भगवान श्री रामकृष्ण देव और उनके पार्षदों द्वारा स्वयं मनाया जाता था ।उन्होंने कहा कि होली को भगवान विष्णु और उनके भक्त प्रह्लाद के सम्मान में बुराई पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज ने सर्वप्रथम त्रिमूर्ति, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को अबीर गुलाल लगाया उसके बाद उन्होंने वहां पर उपस्थित कुछ भक्तों को अबीर गुलाल लगाकर होली का उत्सव मानाया। इसके बाद सभी लोग उमंग पूर्वक नृत्य करते हुये प्रभु को स्मरण कर रहे थे साथ ही साथ हरि लूट का आयोजन स्वामी मुक्तिनाथानन्द महाराज के नेतृत्व में हुआ तथा सभी उपस्थित भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया। मुक्तिनाथानन्द महाराज ने बताया कि होली रंग तथा उमंग का त्यौहार है और अगर इस त्योहार की शुरूआत भगवान के स्मरण से तो भक्तों का जीवन सदैव के लिए रंगों में सराबोर हो जाता है साथ ही साथ स्वामीजी ने बताया कि प्रेम के अवतार चैतन्य महाप्रभु की जयंती भी आज के दिन मनायी जाती है। उन्होंने बताया कि संवत 1407 की फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन होलिका दहन के दिन नवद्वीप (नदियां नगर, पश्चिम बंगाल) में महाप्रभु चैतन्य देव का जगन्नाथ मिश्र के पुत्र रूप में माता शची के गर्भ से प्राकट्य हुआ। संयोगवश उसी रात्रि पूर्ण चन्द्रग्रहण होने से सभी भावुक भक्त ‘हरि बोल, हरि बोल’ भगवन्नाम का उच्चारण सहज ही कर रहे थे, नीम के पेड़ के तले जन्म होने से माता वसुन्धरा उन्हें निमाई कहती थी। चन्द्रग्रहणवश चन्द्रमा काला पड़ गया था। ये पांचभौतिक विग्रह में तप्तकांचनगौरांग थे गौरचन्द्र कहे गये। चैतन्य देव ने जीव मात्र पर दया करना, भगवन्नाम से सतत रूचि रखना और जगत हितकारी सदाचार सम्पन्न विनीत व्यक्तित्व वालों का संग करना यही धर्म का सार अपने परम अनुयायी पार्षद सनातन गोस्वामी के समक्ष विश्व को अवदान के रूप में निरूपित किया।