उत्तर प्रदेश

 नर्सिग संवर्ग के पूर्णतः योगदान से होगा संभव -पार्थ सारथी सेन शर्मा 

आरएमएल में नवजात शिशुओं की देखभाल पर कार्यशाला 

 

 बाल रोग विशेषज्ञों ने नवजात शिशु के रखरखाव की दी जानकारी 

  लखनऊ भारत प्रकाश न्यूज़। डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला 19 नवंबर यानि मंगलवार तक चलेगी। सोमवार को बतौर मुख्य अतिथि पार्थ सारथी सेन शर्मा प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य ने नवजात शिशुओ के रखरखाव के लिए डेवलपमेन्ट सपोर्टिव केयर फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ किया। साथ ही संस्थान के निदेशक प्रो. सीएम सिंह मौजूद रहे। वहीं

कार्यशाला का आयोजन प्रो. दीप्ति अग्रवाल, विभागाध्यक्ष, बाल रोग विभाग, डॉ अशोक कुमार गुप्ता सहायक आचार्य,बाल रोग विभाग केजीएमयू के द्वारा किया गया। जिसमें संस्थान के डीन डॉ. प्रद्ययुमन सिंह, अन्य संकाय सदस्य, डॉ पिंकी जोवेल, मिशन निदेशक, एनएचएम, डॉ रतन पाल सिंह सुमन, महानिदेशक परिवार कल्याण विशिष्ट अतिथि के रूप उपस्थित रहे। बता दें कि यह कार्यशाला मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों के बालरोग विशेषज्ञों के लिए आयोजित की गयी है। कार्यशाला के संसाधन संकाय डॉ. एसएन सिंह, डॉ दीप्ति अग्रवाल, डॉ शालिनी त्रिपाठी, डॉ अशोक कुमार गुप्ता हैं। डेवलपमेन्ट सपोर्टिव केयर फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर का मॉड्यूल उप्र सरकार के निर्देशानुसार लोहिया संस्थान के बाल रोग विभाग यूनिसेफ और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संयुक्त प्रयास से विकसित किया गया है। इस मौके पर संस्थान के निदेशक, प्रो. सीएम सिंह ने कार्यशाला आयोजक समिति को बधाई देते हुए कहा कि माड्यूल की सफलता तभी संभव है जब सभी संवर्ग एक जुट होकर ईमानदारी से इसका अनुपालन करेंगे। इसी क्रम में पार्था सार्थी सेन शर्मा ने कहा कि इस माड्यूल की सफलता तभी संभव है जब नर्सिग संवर्ग का भी पूर्णतः योगदान हो। क्योंकि वह चिकित्सक एवं अभिभावको के बीच पुल की भॉति काम करती है और जिनका काम बच्चों की सेवा एवं ध्यान रखना होता है।

डॉ. अशोक कुमार गुप्ता ने नवजात शिशुओं में संरक्षित नींद के महत्व के बारे में बताया कि शिशुओं में आरामदायक नींद को बढ़ावा देने के लिए कम रोशनी और कम शोर के स्तर को बनाए रखने की आवश्यकता है,त्वचा से त्वचा का संपर्क सुरक्षित नींद को बढ़ावा देता है साथ ही यह भी समझाया कि अपने बच्चे के साथ सोने के समय को अभिभावको एक शांत अवधि के रूप में देखने के लिए कोे प्रोत्साहित करें।

डॉ शालिनी त्रिपाठी ने बताया नवजात शिशु में दर्द और तनाव के संकेतों को पहचानना महत्वपूर्ण है। नवजात शिशुओं में भूख के समय हाथ से मुंह दबाना नवजात का स्व-नियामक व्यवहार है। शिशु के अकेले आरामदायक होने पर कंबल लपेटना, उंगली और पैर दबाना नवजात का स्व-नियामक व्यवहार है। जिसे समझना आवश्यक है।

डॉ दीप्ति अग्रवाल ने शिशुओं के दैनिक जीवन की गतिविधियों पर बताया कि शिशु की नाभि पर किसी प्रकार के तेल या पर्दाथ का प्रयोग न करे, उसे सूखा रखें। काजल न लगाएं। बच्चे को ऊनी कपड़ों के नीचे सूती कपड़ों की एक परत पहनाएं। मालिश के स्थान पर हल्के हाथों से तेल लगाएं।

डॉ. एसएन सिंह ने नवजात शिशु के स्वास्थ्य के लिए माता-पिता के अतिरिक्त परिवार की भागीदारी कितनी महत्वपूर्ण है के बारे में बताया।

कार्यशाला के प्रशिक्षण पैकेज में मॉड्यूल, फ्लिप बुक और पोस्टर शामिल है। मॉड्यूल का उपयोग डॉक्टरों और नर्सों को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाएगा। फ्लिप बुक का उपयोग माता-पिता परिचरों के प्रशिक्षण के लिए नर्स काउंसलर द्वारा किया जाएगा। मॉड्यूल बीमार और छोटे नवजात शिशुओं के लिए फैमिली पार्टिसेपेटरी केयर और डेवलपमेन्ट सपोर्टिव केयर के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। प्रशिक्षण इस मॉड्यूल पर आधारित है जो बीमार और छोटे नवजात शिशुओं की देखभाल की गुणवत्ता को मजबूत करने और नवजात अस्तित्व में सुधार करने के लिए काम करेगा।

एफपीसी परिवार को उनके बीमार नवजात शिशु के प्रवेश से निर्वाहन तक, तथा निर्वाहन के बाद की देखभाल करने के लिए सशक्त बनाता है। विकासशील रूप से सहायक देखभाल डीएससी विकास को बढ़ावा देता है, और नवजात शिशु के विकासशील मस्तिष्क को बहुत आवश्यक उत्तेजना प्रदान करता है और बीमार शिशुओं के लिए संभावित रूप से फायदेमंद होता है। नवजात देखभाल और बेहतर उत्तरजीविता दर की गुणवत्ता में सुधार करने में एफपीसी एक महत्वपूर्ण अवधारणा के रूप में उभरा है।

 

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